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प्रधान सम्पादकीय
९ वें वर्ष में कलिंग देश पर आक्रमण किया था और उस महासंग्राम में लाखों योद्धाओं की मृत्यु हुई थी, लाखों बन्दी बनाये गये थे और लाखो लोग बेघरबार हो गये थे। इसी घटना ने अशोक के जीवन को हिंसा के मार्ग से अहिंसा की ओर लौटा दिया था। ईसवी पूर्व दूसरी शती में हुए सम्राट् खारवेल के लेख से विदित होता है कि वे यादि से हो, सम्भवतः अपने वंशानुक्रम से ही, जैनधर्मावलम्बी थे। उन का शिलालेख ही 'णमो अरहताण' के महामन्त्र से प्रारम्भ होता है। लेख में यह भी अंकित पाया जाता है कि जिस जैन प्रतिमा को नन्दवंशी राजा कलिंग से मगध ले गये थे उसे खारवेल सम्राट ने वहां से पुन लाकर अपनी राजधानी में प्रतिष्ठित किया। उन के जीवन में धार्मिक, नैतिक तथा लौकिक भावनाओ और घटनाओं का अद्भुत समन्वय पाया जाता है। कुमारकाल में राजोचित समस्त विद्याओ और कलाओं को सीखकर उन्होंने २४ वर्ष की आयु में राज्याभिषेक पाया, और फिर अगले १३ वर्षों में देश-विजय एव जन-कल्याणकारी कार्यों का ऐसा अनुक्रम स्थापित किया जो अपने आप में एक आदर्श है। उन के समय में जिन गुफा मन्दिरो का निर्माण किया गया ( शि० ले० सं० २, २), उन की सुरक्षा और जीर्णोद्धार आदि की व्यवस्था करना उन के उत्तराधिकारी राजाओं ने भी अपना धर्म समझा,
और यह क्रम १० वीं शताब्दी तक अखण्ड रूप से चलता पाया जाता है, जब कि वहाँ के राजा उद्योतकेसरीदेव द्वारा किये गये जीर्णोद्धारादि का उल्लेख वहां के शिलालेखो में मिलता है (शि० ले० सं० ४,९३-९५ ) ____ यो तो अन्य भारतीय शिलालेखो के साथ-साथ जैन शिलालेखो का वाचन, सम्पादन व अनुवाद सहित प्रकाशम आदि तभी से होता चला आ रहा है जब से पुरातत्त्व विभाग की स्थापना हुई, तथा ऐपियाफिया इण्डिका ऐपि. कर्नाटिका आदि विशेष जर्नलों का प्रकाशन आरम्भ हा; किन्तु यह सामग्री उक्त जर्नलो में यत्र-तत्र बिखरी पड़ी थी और वह प्रायः जैनधर्म के इतिहास पर ग्रन्थ व लेख लिखनेवालो के लिए सरलता से उपलब्ध नही