Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 05
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 76
________________ जैन - शिलालेख संग्रह [ २९३ - ( ६ ) यह लेख मन्दिर नं० ७७ के सामने चरणपादुका के पास है । सं० १८९० मे मण्डलाचार्य विजयकीर्ति के शिष्य हीरानन्द, मेघराज, परमसुख, भागीरथ आदि के नामो का इस में उल्लेख है । उपर्युक्त, शि० क्र० बी ४०२ ૧૧૨ ( ७ ) यह लेख मन्दिर नं० ४३ मे है । राजा पारीछत के राज्य मे पं० परमसुख व भागीरथ के उपदेश से बलवन्तनगर के चौधरी कल्याणसाहि द्वारा सं० १८९० में मन्दिर निर्माण का इस में वर्णन है । उपर्युक्त, शि० क्र० बी ३६५ २९३-२९४-२९५ सोनागिरि ( दतिया, मध्यप्रदेश ) [सं०] १८९० = सन् १८३३, सस्कृत- नागरी श्रीमहारक मूल संघतिलके श्रीकुंदकुंदान्वये श्रीगोपाचलपट्टके गणबलात्कारे हि वागच्छके आकाशे नवनागचन्द्र मिलिते सोमे सिते कार्तिके मुनितिध्यां च सुरेन्द्र भूषणयते, संस्थापिते पादुके तेनैव कथिता सदर्भवृद्धिः श्रेयसुधा । उक्त लेख सोनागिरि के तलहटी के मन्दिर क्र० १२ के आँगन में स्थापित चरणपादुकाओ के चारो ओर वृत्ताकार दो पंक्तियों में है । इस में कार्तिक शु० ७ सोमवार, १८९० ( जो संवत् होना चाहिए ) के दिन मूलसंघ - कुन्दकुन्दान्वय बलात्कारगण वाग्गच्छ - गोपाचलपट्ट के सुरेन्द्रभूषण यति की पादुकाओं की स्थापना का उल्लेख है । इन पादुकाओं के समीप दो अन्य छत्रियो में भी चरणपादुकाएं हैं जिन पर भ० हरेन्द्रभूषण तथा

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