Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 05
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 77
________________ -३०६] सोनागिरि भ० जिनेन्द्रभूषण के नाम पढे जा सकते हैं किन्तु लेखो का अन्य भाग अस्पष्ट है । उक्त विवरण ता० ६-६-६९ को प्रत्यक्ष दर्शन के अवसर पर अंकित किया गया था। वर्तमान भट्टारक चन्द्रभूषणजी के कथनानुसार उन के पूर्व के पट्टाधिकारी जिनेन्द्रभूषण के देहान्त की तिथि सं० २००० तथा उन के पूर्ववर्ती भट्टारक हरेन्द्रभूषण की देहान्ततिथि सं० १९८८ थो । भ० हरेन्द्रभूषण सं० १९४५ मे पट्टारूढ हुए थे। प्रथम ( सं० १८९० के ) लेख का सारांश रि० इ० ए० १९६२-६३ शि० क्र. बी ४११ में भी मिलता है। २९६ से ३०६ सोनागिरि ( दतिया, मध्यप्रदेश ) सं० १८९९ से १९४५ = सन् १८४३ से १८८९ संस्कृत नागरी ये ग्यारह लेख यहाँ के विभिन्न मन्दिरो में प्राप्त हुए हैं। विवरण इस प्रकार है (१) यह लेख मन्दिर नं. १३ में है। दतिया के बुन्देल राजा विजयबहादुर के राज्य मे स० १८९९ में बलवन्तनगर के नन्दकिशोर, मणीराम, भोलानाथ और परिवार द्वारा इस मन्दिर का निर्माण किया गया था। रि० इ० ए० १९६२-६३ शि० ऋ० दी ४१२ (२) यह लेख मन्दिर नं. ७६ की एक मूर्ति के पादपीठ पर है। इस मे बलात्कारगण के गोपाचलपट्ट के भ० जिनेन्द्रभूषण, महेन्द्रभूषण व

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