Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 05
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 75
________________ - २१२] सोनागिरि (१) यह लेख मन्दिर नं० ३४ में है । दतिया के बुन्देल राजा पारीछत के राज्य में सं० १८७३ मे भ० देवेन्द्रभूषण के शिष्य विजयकोति तथा पं० परमसुख व भागीरथ के उपदेश से बलवन्तनगर निवासी ठकुरो बुलाखीदास ने ऋषभदेवमूर्ति की स्थापना की तथा इस मूर्ति के शिल्पी का नाम नोरना था ऐसा इस मे वर्णन है। रि० इ० ए० १९६२-६३ शि० क्र० बी ३६४ (२) यह लेख मन्दिर नं० ५७ मे है । राजा पारीछत के राज्य में पं० परमसुख व भागीरथ के उपदेश से लाला लछमीचन्द द्वारा सं० १८८३ मे मन्दिर का जीर्णोद्धार किया गया था तथा मणोराम बन्धु चम्पाराम ने यहां की यात्रा की थी ऐसा इस मे वर्णन है। उपर्युक्त, शि० ऋ० बी ३७१ (३) यह लेख मन्दिर नं० २३ में है । इस मे सं० १८८४ में मूलसंघ के भ० सुरेन्द्रभूषण तथा चन्देरी निवासी खंडेलवाल सभासिंध के नाम अंकित है। रि० इ० ए० १९६३-६४ शि० ऋ० बी० १४४ (४) यह लेख मन्दिर न० ३७ मे है तथा ऊपर के लेख जैसा उपर्युक्त, शि० ऋ० बी १४७ (५) यह लेख मन्दिर नं० ७६ मे है । इस में सं० १८८८ तथा गोलानाथ यह शब्द अंकित है। रि० १० १० १९६२-६३ शि० ऋ० बी ४००

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