Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 05
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 74
________________ जैन-शिलालेख-संग्रह [२८६ - श्रीमूलसंधे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्रीकुंदकुंदाचार्यान्वये श्रीगोपाचलपट्टे महारकजी श्रीविश्वभूषणजी तत्पट्टे श्रीसुरेंद्रभूषणजी तत्पढे श्रीलक्ष्मीभूषणजी तत्पट्टे श्रीमुनींद्रभषणजी तस्पट्टे श्रीदेवेंद्रभूषणजी तत्पष्टे श्रीनरेंद्रभषण नी तत्पट्टे श्रीसुरेद्रभूषण विद्यमाने श्रीमद्वारक देवेंद्रमषणस्य गुरुभ्राता मंडलाचार्यजी श्रीविजयकीर्तिजी तेन मंदिरजीर्णोद्धारेण पुनर्निमपिणं कृत तरिमप्यो पडित परमसुखजी पंरित मागीरथजी चि. हीरानंद मेघराजादि मंदिरस्य नित्य सेवां कुर्वतु श्रीरस्तु श्रीकल्याणमस्तु अपरं च १८६३ की सालमै तो मंदिर को नीम लगी अर संवत १८६६ की सालमै रथयात्रा प्राणप्रतिष्ठा मई भर स. १८६८ की सालमै मंदिर पूर्ण बनि गओ जै कोइ वाचै तिनिको धर्मवृद्धि आशीर्वाद यथायोग्यम् श्री श्री श्री श्री श्री ___ उपर्युक्त लेख सोनागिरि की तलहटी के मन्दिर क्र. ९ के द्वार पर लगी हुई शिलापट्टिका पर खुदा है । संवत् १८६३ से १८६८ तक रावराजा पारीछत (परोक्षित ) बहादुर के राज्यकाल में भट्टारक सुरेन्द्रभूषण के कार्यकाल में आचार्य विजयकीति द्वारा इस मन्दिर का जीर्णोद्धार किया गया था। उन के शिष्य पण्डित परमसुख, भागीरथ, होरानन्द, मेघराज आदि थे। उपर्युक्त विवरण प्रत्यक्ष दर्शन के अवसर पर ता० ६-६-६९ को अंकित किया गया था। रि० इ० ए० १९६२-६३ शि० क्र. बी १०९ में भी इस का साराश दिया है। २८६ से २९२ सोनागिरि ( दतिया, मध्यप्रदेश ) सं० १८७३ से १८९०८-सन् १८१८ से १८३५, संस्कृत-नागरी ये सात लेख यहाँ के विभिन्न मन्दिरों में मिले है । इन का विवरण इस प्रकार है

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