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२.
जैन-शिलालेख संग्रह
३९
वरंगल ( अन्ध्र )
शक ९ (८० ) = सन् १०५८, कन्नड
[१९
विलम्ब संवत्सर का यह लेख टूटा है । किसी सिद्धांतदेव के शिष्य मुनिसुव्रत का इस में उल्लेख है । यह लेख किले में शंभुनिगुडि के सामने पड़ा है।
रि० ६० ए० १६५७-५८, पृ० २४ शि० क्र० बी ४४
४०
कोलनुपाक ( नलगोण्डा, आन्ध्र )
शक ९८९ = सन् १०६७, कन्नड
पेवागु नामक नाले के पास एक स्तम्भ पर यह लेख है । रेवुंडि और नेरिल में राष्ट्रकूट शंकरगंड द्वारा निर्मित बसदियों को जुव्विकुटे और निडंगलूरु में पहले कुछ जमीन दान मिली थी जो बाद मे अन्य लोगो ने छोन ली थी । महासधिविग्रहि दण्डनायक केसिमय्य तथा रेब्बिसेट्टि, अप्पय्य आदि की प्रार्थना पर रानी ने कार्तिक शु० १३ सोमवार, प्लवंग संवत्सर शक ९८९ को उक्त जमीन पुन उन बसदियो को सौपी। उक्त समय चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्य मल्ल सपरवाडि से राज्य कर रहे थे तथा कोल्लिपाके ७००० प्रदेश पर महासामन्त मेळरस नियुक्त थे ।
रि० ३० ए० २६६१-१६६२, शि० क्र० बी ६३