Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 05
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 40
________________ जैन-शिलालेख-स ग्रह [१८योगोश-कल्नेलेदेव-रविचन्द्र मुनीश्वर-रविनन्दिदेव-रळाचार्यमुनीद्र इस प्रकार बताया है। ए० ६ ० ३६ पृ०६७-११० १८ येडरावी ( बेलगांव, मैसूर ) शक ९०१ = सन् ५७९, कन्नड बर्मदेव मन्दिर के आगे चबूतरे में लगी हुई एक शिला पर यह लेख है। इस मे बताया है कि कनकप्रभ सिद्धान्तदेव के चरण धो कर गांव के बारह गावुण्डोने एळरामे के देहार के लिए संक्रान्ति के अवसर पर कुछ भूमि पुष्य बदी १३ प्रमादि सवत्सर शक ९०१ को दान दी थी। रि० १० ए० १६६३-६४, शि० क्र. बी ३५६ द्वारहट ( अलमोडा, उत्तरप्रदेश ) स. २०४४ = सन् ९८८, संस्कृत-नागरी चरणपादुका के पास यह लेख है। इस मे उक्त. वर्ष तथा अजिका देवश्री की शिष्या अजिका लालतश्री का नाम अंकित है। रि० ३० ए० १९५८-५६, शि० क्र० सी ३८३ देवगढ (झाँसी, उत्तरप्रदेश) सं० १०५१ = सन् ९९४, संस्कृत-नागरी यह लेख मन्दिर न० ७ मे है। स० १०५१ मे मन्दिर के द्वार के निर्माण का इस मे वर्णन है। रि०५० ए० १६५६-६०, शि०० सी ५०५

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