Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 05
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 57
________________ जैन-शिलालेख-सग्रह [१३० - १३० पेद्द तुम्बळम् ( कुर्नूल, आन्ध्र ) लिपि-१२वी सदी की, कन्नड एक जिनमति के पादपीठ पर यह लेख है। मूलसंघ-देशीगणपोस्तकगच्छ-कोण्डकुन्द अन्वय के चन्द्रकीति भट्टारक के शिष्य चिसेट्टि की पत्नी बोचिकब्बे द्वारा गोम्मट पार्श्वजिन की स्थापना का इसमे वर्णन है। रि० ३० ए० १९५६-५७ पृ० ४३ शि० क. बी ४४ १३१-१३२-१३३-१३४ देवगढ ( झांसी, उत्तरप्रदेश) लिपि-19वीं-१२वी सदी की, संस्कृत-नागरी ये लेख यहाँ के जैन मन्दिरो मे मिले है। एक मे शान्तिनाथ मन्दिर, राजा नल्लट तथा व्यापारी चक्रेश्वर के नाम अकित है। यह श्लोकबद्ध है। दूसरा मन्दिर न० १६ के पूर्व में एक शिला पर है। इसमे श्रीशुभ कीर्ति, माघनन्दि,-रचन्द्र, कामदेव, गागेयनृप ये नाम पढे गये है। रि० १० ए० १९५८-५६ शि० ऋ० सी ४११, ४१६ यहो के मन्दिर न० १९ में इसी समय को लिपि निम्नलिखित शब्द पाषाण खण्डो पर पढे गये हैं-१) बालचन्द्र निर्मित दानशाला २) संझरा पुत्र चन्द्रना ३) जयदेव. प्रणमति । मन्दिर नं० २४ में इसी समय की लिपि मे यह लेख मिला है-भोणी प्रणमति । रि०६० ए० १९५७-५८ शि० क्र. सी ३०५-६

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