Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 05
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 41
________________ बडोह ३६ कुयिबाल ( घारवाड, मैसूर ) शक ९६७ = सन् १०४५, कन्नड कुय्यबाळ की बसदि के लिए कुछ गावुण्डो द्वारा गुण (भद्र ) सिद्धान्तिदेव का दिये गये दान का इस लेख में वर्णन है । उन की शिष्या मोनिमति चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्ल (सोमेश्वर १ ) - ३८ ] कन्ति का नाम भी दिया है । के राज्य का उल्लेख भी हैं । ( मूल लेख कन्नड में मुद्रित ) २७ सा० ६०५० २०५० ३५-३६ ३७ या बचाना ( भरतपुर, राजस्थान ) सं० १११० = सन् १०५३, संस्कृत - नागरा ऋषभदेव की मूर्ति के पादपीठ पर यह लेख हैं । जाह के पुत्र देलूक ने आपाढ, स० १११० मे यह मूर्ति स्थापित की थी । रि० ५० ए० १९५६-५७, पृ० ६८ शि० क्र० बी २३४ रि० इ० ए० १९६१-६२ शि० क्र० बो ६४३ मे भी संभवत: इसी लेखका विवरण है । यद्यपि यहाँ मूर्तिस्थापक का नाम जादु का पुत्र देल्हुक ऐसा पढा गया है, तिथि वही है । ३८ asोह ( विदिशा, मध्यप्रदेश ) सं० ( ११ ) १३ = सन् १०५७, संस्कृत-नागरी यह लेख जिनमन्दिर के द्वार पर है । इस में द्वादसक्क मंडल के आचार्य केवली श्री अभयचन्द्र का नाम तथा उक्त वर्ष अकित है । रि०३० ए० १६६१-६२ शि० क्र० सी १६६२

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