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प्रस्तावना
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चन्द्रावत- रामपुरा के चन्द्रावत राजा अचलदास तथा उस के पौत्र दुर्गभानु का वर्णन वहाँ के सन् १६०७ के लेख ( क्र० २५३ -४ ) मे है । इन्होने बघेरवाल जाति के साह जोगा और पाथू ( पदारथ ) को मन्त्रिपद पर नियुक्त किया था । दुर्गभानु के पुत्र चन्द्र ने पाथूसाह को मुख्य मन्त्री बनाया था । इन की वीरता व धर्म कार्यों के वर्णन के कारण यह लेख महत्त्वपूर्ण है । इस वंश का यह प्रथम जैन लेख प्रकाशित हुआ है ।
मुगल- बादशाह जहाँगीर के राज्य में राणोद में सन् १६१८ में मूर्तिप्रतिष्ठा उत्सव हुआ था ( ले० क्र० २५९ ) । उपर्युक्त चन्द्रावत राजा भी बादशाह अकबर व जहाँगीर के सामन्त थे ( पिछले संग्रह में भी मुगल राज्यकाल के कई लेख है ) ।
अन्य राजा व सामन्त- कई लेखो में कुछ अन्य राजाओ व सामन्तो का उल्लेख मिला है जिन के वश, राज्य या प्रभावक्षेत्र के बारे में निश्चित जानकारी प्राप्त नही है । सन् ९२३ के राजौरगढ लेख ( क्र० १६ ) में राजा पुलीन्द्र व सावट के नाम उल्लिखित है । देवगढ के सन् १९५४ के लेख ( क्र० ९९ ) में महासामन्त उदयपाल का नाम अंकित है । यहीं के १२वी सदी के लेख ( क्र० १३१ ) मे राजा नल्लट का नाम प्राप्त होता है । उखलद के दो मूर्तिलेखो ( क्र० १३६-७ ) में सन् १२१५ में राय प्रतापदमन व राय हमीर उल्लिखित है । देवगढ के अनिश्चित समय के दो लेखो ( क्र० ३७० तथा ३७२ ) में चन्देरी के राजा दुर्जनसिंह तथा महाराजकुमार तेजसिंह का उल्लेख है । ओर्छा के बुन्देल राजा जुगराज सन् १६२४ के सोनागिरि के मूर्तिलेख ( क्र० २६५ ) में उल्लिखित हैं । महाराजकुमार उदितसिंह और उन के अधीन अधिकारी गोपालमणि का सोनागिरि के सन् १६९० के लेख ( क्र० २७२ ) में उल्लेख है । दतिया के राजा छत्रजीत ( लेख क्र० २७८ व २८२ ), शत्रुजोत ( लेख क्र० २७६ ), पारीछत ( लेख क्र० २८५-७ ), विजयबहादुर (लेख क्र० २९६) तथा भवानीसिंह ( लेख क्र० ३०४ ) सोनागिरि के लेखों में उल्लिखित है ।