Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 05
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ - ] वजीरखेड ताम्रपत्र २७ मेव शस्त्रशिरसा येन स्वसिंहासनम् भू (भ्र.) मंगेन सहक मंगम परे नीता परं विद्विषः [0] तेषां२८ राज्यमपि क्षणाच्चलमनोराज्यावशेपं (पं) कृतं राज्ये कल्पलतेव कामफलदा यस्यामवन्मेदिनी ।। [१७] भूमारोव२९ हने जित: फणिपति. शक्रः श्रिया निर्जित. कीर्ति क्रान्तदिगन्तरा मलिनिता येनाखिलक्ष्माभृताम् [1] त्रैलो. ३० क्येपि न विद्यतेस्य सदृशो राजेति यस्योच्चकैरामाति प्रकटीकृतं यश इव श्वेतातपत्रत्रयम् ।। [१८] निर्मिन्न नर३१ सिहता गतवता वक्षोमुना विद्विषाम् देवोयं विततस्वचक्र दलितारा तिश्रियाप्याश्रित. [1] तत्सेवेहममुं ध्वजा३२ प्रनिलयो राजानमित्याश्रितो रागादंचितकांचनोज्वल तनुय्य वैनतेय [] स्वयम् ॥ [१९] दानं भद्रगज. सृजन्न३३ पि रुषा कृष्णं करोत्याननं सवृक्षोपि फलप्रद. स्वसमये वर्षन् घनो गर्जति [1] न क्रोधोद्वहनं न कालह द्वितीय पत्र . दूसरी ओर ३४ रणं नोस्सेकतो गर्जितं दानं यस्य तथाप्यनूनमभवद्राज्याभिषे कोत्सवे ।। [२०] देवो दानित । स निर्जितव (ब) लि:३५ श्रीकीर्तिनारायण जित्वा वारिधिमेखलां वसुमतीमेकाधिपः पालयन देवता (बा) ह्मणभोगजातम३६ खिलं कृत्रा (वा) नमस्य (म्यं) फलं सर्वेषामपि भूभुजां स्वयम भूदेवो नमस्यश्चिरम् ॥ [३१] यश्च विनयविनतानेक३. भूपालमौलि मालालालितचरणारविन्दयुगल. सौन्दर्यशौर्य चातुर्योदा यधैर्यगाम्मीर्यवीर्यादि

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97