Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 05
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 31
________________ जैन-शिलालेख-संग्रह [१३मूर्ति की स्थापना का उल्लेख है। तीसरे में नागनंदि, (दो) पनंदि सिद्धात भट्टारक तथा शीलबे, आळ क एवं आचबे के नाम मिलते हैं । रि० ३० ए० १९५८-५६, शि० ऋ० बी १५६, १५८-६ लोकापुर (बेळगांव, मैसूर ) ९वी शताब्दी, कन्नड इस लेख मे राजा कृष्ण के साले के रूप में लोकटे नामक सामन्त का वर्णन है। यह तलकब्बे का पुत्र था। धोर, दोण्ड तथा बंक इस के बन्धु थे । बनवासि १२००० प्रदेश पर शासन करते हुए इस ने लोकपुर नगर बसाया तथा उसे हरि, हर, जिन और बुद्ध के मदिरो से सुशोभित किया। इस ने लोकसमुद्र तालाब भी खुदवाया। क० रि०६० १६४२-४३, शि० क्र० ३१ वजीरखेड ताम्रपत्र ( प्रथम ) ( नासिक, महाराष्ट्र ) शकवर्ष ८३६ = सन् ९१५, नागरी-संस्कृत प्रथम पत्र , ( स्वस्ति चिह्न ) श्रिय. पदनित्यमशेषगोव(च)रनयप्रमाणप्रतिषिद्ध दुष्पथम् [ 1 ] जनस्य भव्यत्वसमाहितात्मनो जयत्यनुनाहि जि२ नेन्द्रशासनम् ।। [१] श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलान्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ।। [२] अ३ स्स्यद्यापि निशामुखैतिलको राजेति नामोज्वलम् वि (वि) प्राणो मृदुमि करैर्जगदिदं यो राजते रञ्जयन् [1] यस्यै

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