Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 05
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 21
________________ प्रस्तावना हुआ था। सम्राट् जगदेकमल्ल के राज्यकाल मे सन् १९४८ मे हेगडे मादिराज व आदित्य नायक ने कुयिबाळ के मन्दिर को दान दिया था ( लेख क्र. ९६ ) (पिछले संग्रह मे इस राजवंश के कई लेख हैं जिन मे प्राचीनतम सन् ९९० का है )। कदम्ब-इस वंश के महामण्डलेश्वर मल्लदेव के राज्य मे दण्डनायक माचरस ने पार्श्वनाथ मन्दिर को दान दिया था ऐसा गुंडबले के लेख (क्र. ९० ) से ज्ञात होता है ( इस वंश को मुख्य शाखा के ११ और सामन्तो के १५ लेख पिछले सग्रह मे है जिन मे सब से पुराने पांचवी सदी चोल- उज्जिलि के दानलेख (क्र. १०४ ) मे श्रीवल्लभ चोल महाराज द्वारा इन्द्रसेन आचार्य को दिये गये दान का वर्णन है । यह लेख बारहवी सदी का है (इस वश को मुख्य शाखा के २८ लेख पिछले संग्रह मे है जिन मे सब से पुराना लेख सन् ९४५ का है)। ___ यादव-देवगिरि के यादव राजा कन्नर के राज्यकालमे देशीगण के आचार्यों को सन् १२४८ मे कुछ दान मिला था ( लेख क्र० १४१ )। इमो वश के राजा रामचन्द्र के समय सन् १२७१ मे हिरेकोनति मे एक श्राविका का समाधिलेख (क्र. १४२ ) स्थापित हुआ था । सन् १२८३ का सुतकोटि का समाधिलेख (क्र. १४८ ) भो रामचन्द्र के राज्यकाल का है । हिरेअणजि के सन् १२९३ के दान लेखों (क्र० १५०-१ ) मे रामचन्द्र के राज्य में महाप्रधान परशुराम के शासनकाल का उल्लेख है। यही पर एक श्राविका का समाविलेख (क्र. १७५) इसी राजा के समय का है ( पिछले संग्रह मे यादव वंश के २४ लेख है जिन मे सब से पुराना सन् ११४२ का है)। ___खुमाण ( गुहिलोत )-चित्तौड के एक खण्डित, लेख (क्र० ११३) मे बारहवी सदी के खुमाण वश के राजा जैत्र सिंह का उल्लेख है। यहीं के एक अन्य लेख (क्र० १५३ ) मे आचार्य धर्मचन्द्र का सम्मान करने

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