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जैन-शिलालेख संग्रह
वाले जिस बोर हमीर का उल्लेख है वह भी सम्भवत. इस वंश का राजा था ( पिछले संग्रह मे इस वंश का कोई लेख नहीं मिल सका था)।
चाहमान हथूडी के सन् १२८८ के दानलेख (क्र. १४९ ) में इस वंश के सामन्तसिंह के राज्य का उल्लेख है ( पिछले संग्रह में इस वंश की विभिन्न शाखाओ के आठ लेख है जिन में सब से पुराना सन् ११३४
विजयनगर-दक्षिण के इस साम्राज्य के राजा हरिहर के मन्त्री बैच के पुत्र इगप दण्डनायक की प्रशंसा पानुगल्लु के सन् १३९७ के लेख ( क्र. १८२ ) मे मिलती है। इरुगप द्वारा एक जिन मन्दिर के निर्माण का वर्णन सन् १४०२ के आनेगोदि के लेख ( ऋ० १९२ ) में है । सन् १५१५ के खबदकोणे के लेख (क्र. २३२ ) मे सम्राट् कृष्णदेवराय के सामन्त विजयप्प वोडेय द्वारा आचार्य वीरसेन को दिये गये दान का वर्णन है। 'मकी के सन् १५१५ के दानलेख ( क्र० २३१ ) मे इम्मडि देवराज के शासन का उल्लेख है। केरवसे के सन् १४५० के दानलेख में (क्र० २०१ ) वीरपाण्ड्यदेव का तथा जलोल्ली के सन् १५४५ के मन्दिर लेख ( क्र. २४० ) में गेरसोप्पे के कृष्णभूपाल का प्रादेशिक शासक के रूप मे उल्लेख है, ये दोनो विजयनगर के सम्राटो के सामन्त थे ( पिछले संग्रह मे विजयनगर राज्य के कई लेख है जिन मे सब से पुराना सन् १३५३ का है)। __सोमर-ग्वालियर के तोमर वंश के १५वी सदी के राजा डूंगरसिह और कोर्तिसिंह का उल्लेख वहाँ के कई मूर्तिलेखो मे है ( लेख क्र. १९९, २०२, २०५-६ आदि ) ( पिछले मग्रह मे भी इन के कुछ लेख हैं )।
कूर्म ( कछवाह )-इस वश के राजा रायमल व उन के मन्त्री देईदास का उल्लेख रेवासा के सन् १६०४ के मन्दिरलेख मे (क्र. २५१ ) मिला है ( पिछले संग्रह मे कछवाहो की पुरानी शाखाओ के दो लेख सन् ९७७ व १०८८ के है)।