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[१] महाराष्ट्र के परभणी जिले मे पूर्णा नदी के तौर पर उखलद ग्राम है, यहाँ के नेमिनाथमन्दिर को जिनमूर्तियो के पादपीठों पर २३ लेख मिले है। इन में पहले सात लेखों में उल्लिखित भद्रारक उत्तर भारत के है अत. ये मूर्तियां उत्तर भारत के किसी स्थान में प्रतिष्ठित हुई थी तथा बाद मे उखलद लायी गयी ऐसा प्रतीत होता है, इन का समय सं० १२७२ से सं० १५४८ तक का है। इन मे अन्तिम सं० १५४८ का लेख तो ४१ मर्तियों के पादपीठों पर है ( इस शिलालेखसंग्रह के चतुर्थ भाग में बताया गया है कि यही लेख नागपुर के विभिन्न मन्दिरो मे स्थित ७७ मूर्तियो के पादपोठो पर है)। बाद के सोलह लेख महाराष्ट्र के ही कारंजा व लातूर इन दो स्थानो के भट्टारको से सम्बन्धित है तथा अधिकतर सोलहवी-सत्रहवी सदी के है।
[२] मध्यप्रदेश के उत्तर कोने में स्थित ग्वालियर के किले मे २५ लेख प्राप्त हुए हैं । इन से पन्द्रहवी-सोलहवी सदी के ग्वालियर के राजाओ, भट्टारको तथा श्रावको के विषय मे काफी जानकारी मिलती है।
[३] मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित सोनागिरि पहाड़ी के विभिन्न मन्दिरो में ५२ लेख प्राप्त हुए है। इन में से एक सातवी सदी का और छह बारहवी से चौदहवी सदी तक के है। अत' प० नाथूरामजी प्रेमी ने इस स्थान की प्राचीनता के बारे में सन्देह प्रकट करते हुए जो विचार प्रकट किये थे ( जैन साहित्य और इतिहास पृ० ४३८ ) उन में अब सुधार करना होगा । हाँ, सिद्धक्षेत्र के रूप में इस को प्रसिद्धि का इन प्राचीनतर लेखो से पता नहीं चलता। इस स्थान के भट्टारक गोपाचल पट्ट के अधिकारी कहलाते थे। उन के विषय में आगे अधिक स्पष्टीकरण दिया है।
[४] उत्तरप्रदेश के दक्षिण-पश्चिम कोने मे झांसो जिले मे बेतवा नदो के तीर पर स्थित देवगढ़ एक प्राचीन स्थान है। इस लेखसंग्रह के दूसरे भाग में यहां का नौवी सदी का एक लेख है तथा तीसरे भाग में पन्द्रहवी सदी के दो लेख है। प्रस्तुत संकलन में यहां से प्राप्त ९. लेखों का विव.