Book Title: Jain Shastro ki Asangat Bate
Author(s): Vaccharaj Singhi
Publisher: Buddhivadi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! जिन्होंने अन्य मजहब वालों के देखा-देखी, दूकान की भोल रखने की तरह, बिना विचारे अंट-संट खाना-पूरी की है। जो कुछ हो, हम जैनों का कर्तव्य यह पुकार रहा है कि इन विषयों पर पड़े हुए परदे को हटाकर इनके असली स्वरूप को प्रकट करने की चेष्टा करें। इस वक्त विज्ञान का प्रकाश इस हद तक अवश्य हो चुका है कि किसी वस्तु के असली रूप पर किसी उद्देश्य से परदा डालकर यदि उसे छिपाया गया हो तो विज्ञान, युक्ति और तर्क की कसोटी पर कस कर देखने वाले व्यक्ति के सामने उसकी असलियत छिपी नहीं रह सकती। आधुनिक शिक्षा में और और चाहे कितने भी अवगुण विद्यमान हों पर एक यह गुण अवश्य है कि वह मनुष्य को मिथ्या अन्धविश्वासों से परे ढकेल देती है। जितनी मात्रा में आधुनिक शिक्षा बढ़ती जायगी, उतनी ही अन्धश्रद्धा कम होती जायगी। हमारा धर्मोपदेशक-वर्ग यह चाहता है कि ऐसी अन्धश्रद्धा कम न होने पावे । इसके लिये वह हर समय प्रयत्न शील भी रहता है, अपने श्रद्धावान श्रावकों में शिक्षा के विरुद्ध प्रचार भी काफी करता रहता है। मगर शिक्षा का प्रश्न इस समय जीवन-यापन और आजीविका की जटिल समस्याओं के साथ बहुत गहरा सम्बन्धित है, इसलिये सिवाय उन धनवान अन्धविश्वासी श्रावकों के कि जिनको आजीविका के संघर्ष से कुछ समय के लिये फुरसत मिल चुकी है, दूसरा कोई ऐसे प्रचार को अपना नहीं सकता। उपदेशकों को चाहिये तो यह था कि यदि शास्त्रों Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 236