Book Title: Jain Shastro ki Asangat Bate
Author(s): Vaccharaj Singhi
Publisher: Buddhivadi Prakashan

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Page 9
________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! 'तरुण जैन' मई सन् १९४१ ई. टिप्पणी : [श्री बच्छराजजी सिंघी का यह लेख अवश्य उन लोगों की आँखें खोलने वाला होगा जिनको शास्त्रों के बचनों की परीक्षा करना ही नास्तिकता और धर्म-द्रोह लगता है। आज जब कि हरेक वस्तु पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार करने की प्रणाली काम में लाई जाती है, कोई भी विचारवान व्यक्ति यह नहीं बर्दाश्त कर सकता कि शास्त्रों की हरेक बात को वुद्धिपूर्वक समझ में न आने पर भी केवल इसी धाक से कबूल कर लेना पड़े कि वह 'सर्वज्ञ' का बचन है। इसमें कोई शक नहीं कि शास्त्र विचारों का वह समूह होता है, जो मनुष्य का पथ-प्रदर्शन करता है; पर उसका अर्थ यदि यह किया जाय कि शास्त्रों में जो नहीं लिखा, वह विचारणीय ही नहीं; और शास्त्रों में जो लिखा है, उस पर कोई प्रश्न ही नहीं किया जा सकता तो शास्त्रों के प्रति इस तरह का दृष्टिकोण जड़ता उत्पन्न करने वाला होता है, जिसके दुष्परिणाम आज हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं। शास्त्रों के नाम पर आज हमारे धार्मिक, नैतिक और सामाजिक विचारों पर जो हुकूमत की जाती है, उसके कारण हमारी सामाजिक और बौद्धिक प्रगति में कितनी बाधा पहुंच रही है, यह समझदार ब्यक्ति फौरन देख सकता है। जो शास्त्र मनुष्य को ज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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