Book Title: Jain Shastro ki Asangat Bate Author(s): Vaccharaj Singhi Publisher: Buddhivadi Prakashan View full book textPage 7
________________ मानने में अनन्त संसार परिभ्रमण का भय दिखाया गया है वहाँ यह सामान्य सामग्री भी आशा है, उनका उक्त भय-भजन के लिये अवश्य पर्याप्त होगी। ___ इस लेख संग्रह को पढ़ने पर, आंखें मूंदकर शास्त्र नामक पोथियों के प्रत्येक शब्दको 'बाबा वाक्यम् प्रमाणम्' मानने वाले और उनके आधार से संसार के परोपकारी कामों के करने में एकान्त पाप जानने वाले पाठकों के हृदय में यदि कुछ भी . परिवर्तन हुआ तो मैं अपने इस तुच्छ प्रयास को सफल समझं गा। ____ अन्तमें, मैं उन सज्जनों को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने मेरे लेखों को पढ़कर मुझे प्रोत्साहित किया। और उन सज्जन-वृन्दों को भी धन्यवाद देना अपना कर्तब्य समझता हूं जिन्होंने अन्धश्रद्धालु होते हुए भी मेरे लेखों को पढ़कर उनमें प्रदर्शित भावों को कड़वी घंटकी तरह निगल कर हजम कर गये और खामोश रह कर अपने धैर्य का. परिचय दिया। धन्यवाद के समय 'तरुण जैन' के सम्पादक-द्वय एवम् तेरापंथी युवक संघ, लाडनू के मंत्री महोदय को भी याद करना परमावश्यक है जिनके पत्रों में ऐसे उग्र लेखों के प्रकाशन का सहयोग मिला। सुजानगढ़ श्रावण सं० २००२ विनीतबच्छराज सिंघी Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.orgPage Navigation
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