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12 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
जैन दर्शन विश्व का सबसे प्राचीन धर्म दर्शन है। यह कहना सहज तो नहीं है, चूंकि जैन दर्शन की प्राचीनता की प्रामाणिकता के लिए कोई क्रमबद्ध साहित्य अथवा इतिहास सुव्यवस्थित रूप से विद्यमान नहीं है। यद्यपि पिछले पचास वर्षों में अनेक विद्वानों ने इस दुष्कर कार्य को करने का अमित प्रयास किया है। तथापि क्रमबद्ध इतिहास के अभाव में अनेक विचारकों ने जैन दर्शन के अस्तित्व के बारे में अनेक भ्रमपूर्ण विचारों का प्रतिपादन किया है। किसी ने जैन दर्शन को हिन्दू धर्म की शाखा मान लिया, तो किसी ने इसे बौद्ध दर्शन की शाखा कह दिया। महावीर तथा बुद्ध की समकालीनता से जैन दर्शन को अर्वाचीन मान लिया गया। जैसा कि श्री विल्सन कहते हैं, कि “सब विश्वस्त प्रमाणों से भी यह अनुमान दूर नहीं किया जा सकता है, कि जैन जाति एक नवीन संस्था है और ऐसा लगता है, कि वह सर्व प्रथम आठवीं और नवीं सदी ईसवी में वैभव और सत्ता में आई थी। इससे पूर्व बौद्ध धर्म की शाखा के रूप में वह कदाचित अस्तित्व में रही हो और इस जाति की उन्नति उस धर्म के दब जाने के बाद से ही होने लगी हो कि जिसको स्वरूप देने में इसका भी हाथ था।''
इस प्रकार के भ्रमपूर्ण विपरीत विचारों एवं धारणाओं को निरर्थक सिद्ध करते हुए विविध साहित्यिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं वैज्ञानिक साक्ष्यों के द्वारा जैन दर्शन की प्राचीनता को प्रमाणित करके इसके गरिमामय-इतिहास के द्वारा इसके प्राचीन गौरव को पुनः स्थापित करने की अत्यधिक आवश्यकता है। फलस्वरूप एक समृद्ध धर्म-दर्शन के पुनरुत्थान के द्वारा मानव संस्कृति का ऊर्ध्वगामी विकास किया जा सके। सर्वप्रथम विविध साहित्यिक प्रमाणों से ही जैन दर्शन की प्राचीनता को प्रमाणित करेंगे। 1. साहित्यिक प्रमाण :
भारतीय दर्शनों के साहित्य एवं विदेशी साहित्य के आधार पर जैन दर्शन की प्राचीनता को प्रमाणित करेंगे। मुख्य रूप से साहित्यिक शोध का चार भागों में विवेचन करेंगे -
1. बौद्ध दर्शन के प्रमाण। 2. वैदिक दर्शन के प्रमाण । 3. जैन दर्शन के प्रमाण। 4. विदेशी व भारतीय विद्वानों के शोध-मत।
बौद्ध दर्शन के प्रमाण : बुद्ध और महावीर की समकालीनता के आधार पर जैन और बौद्ध धर्म को समान प्राचीन समझा जाए तो यह उचित नहीं है। इससे भी आगे विद्वान जैन दर्शन को बौद्ध दर्शन की शाखा तक कह देते हैं। जैसा कि श्री डब्ल्यू. एस. लिले कहते हैं, कि "बौद्ध धर्म अपनी जन्म भूमि में जैन धर्म के रूप में टिका हुआ है। यह निश्चित बात है, कि जब भारत वर्ष में बुद्ध धर्म अदृश्य हो गया,