Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj Author(s): Mohan Chand Publisher: Eastern Book Linkers View full book textPage 9
________________ आमख जैन साहित्य में सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास के निर्माण के लिए बहुमूल्य सामग्री उपलब्ध है, पर अभी तक इसका उपयोग अधिक नहीं हुआ है। भारत के इतिहास की मुख्य धारा में इस सामग्री को तब तक स्थान नहीं मिलेगा जब तक ऐतिहासिक दृष्टि से इसके विभिन्न अङ्गों का अनुशीलन न हो और उन पर शोधप्रबन्ध न लिखे जाएं। इस परिप्रेक्ष्य में डा० मोहन चन्द की यह पुस्तक सराहनीय प्रयास है। उन्होंने बड़े परिश्रम पूर्वक जैन संस्कृत महाकाव्यों में पाए गये तथ्यों के आधार पर पूर्वमध्यकालीन भारतवर्ष की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक अवस्थाओं का विश्लेषणात्मक विवरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने बतलाया है कि शब्दों के अर्थ बदलते रहते हैं । उदाहरणस्वरूप दिखलाया गया है कि 'निगम' जिसका अर्थ नगर होता है मध्यकालीन भारत में गांव के रूप में देखा जाने लगा। यह प्राचीन नगरों की अवनति के कारण हुमा जिसका सम्बन्ध सामन्तवाद के उदय से है। इसमें सन्देह नहीं कि डा. मोहन चन्द ने जैन संस्कृत महाकाव्यों का गहरा अध्ययन किया है और सोच समझकर निष्कर्ष निकाले हैं। मैं माशा करता हूं कि संस्कृत और इतिहास के अध्येता इस पुस्तक से लाभ उठाएंगे। पटना, २४ अक्टूबर, १९८८ राम शरण शर्मा भूतपूर्व अध्यक्ष, भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद्, नई दिल्लीPage Navigation
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