Book Title: Jain Sahitya me Vikar
Author(s): Bechardas Doshi, Tilakvijay
Publisher: Digambar Jain Yuvaksangh

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Page 34
________________ 25 उसमें दोनों मतों के मूल कारण के सम्बन्ध में विशेष गवेषणा पूर्वक विचार करना है और साथ ही इस बात का भी विचार करना है कि अंगसूत्रों में इस विषय में क्या-क्या प्रतिपादन किया गया है, एवं श्रेताम्बर दिगम्बरों के संप्रदाय भिन्न हुये बाद जैन शासन को कैसी कैसी खराब स्थितियों में से गमन करना पड़ा है। दूसरे मुद्दे में चैत्यवाद पर प्रकाश डाला जायगा। उसमें मुख्य तया अनेक प्रमाणों सहित चैत्यवाद का मूल अर्थ समझाया जायगा और साथ ही यह भी बतलाया जायगा कि अंगसूत्रों में चैत्य शब्द किस किस जगह कैसे कैसे अर्थों मे उपयुक्त किया गया है। चैत्य की उपयोगिता और उसका मूर्तिपूजा के इतिहास के साथ क्या सम्बन्ध है इस बात का भी स्पष्टीकरण किया जायगा। एवं इस दूसरे मुद्दे मे मूर्ति पूजा की आवश्यकता बतलाये बाद मूर्ति कैसी होनी चाहिये? उसे कहा रखना चाहिये? वह नग्न होनी चाहिये या कान्दोरे वाली-कटी सूत्र वाली होनी चाहिये? इत्यादि मूर्ति विषयक अनेक प्रश्न, प्रमाण पूर्वक स्पष्ट कर देना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ। तीसरे में देवद्रव्य के सम्बन्ध मे चर्चा होगी। वह कल्पित है या अहिंसा वगैरह के समान अपरिवर्तनीय तत्व है? अगसूत्रों में उसका विधान या उल्लेख है या नहीं? उसकी उत्पत्ति या प्रारम्भ कबसे हुआ किसने और किस लिये किया? इत्यादि विषयो पर व्योरेवार विचार किये बाद देवद्रव्य का वर्तमान स्थिति के सम्बन्ध मे खलासा करने का यथामति प्रयत्न किया जायगा। बीच में ही प्रस गोपात देवद्रव्य के साथ सम्बन्ध रखने वाली कितनीएक कथाओ की शास्त्रीय असगतता बतला कर जैन कथानुयोग के सम्बन्ध मे भी दो शब्द लिखे जायेंगे। ___चौथे मुद्दे में यह लिखा जायगा कि सूत्रो को क्या साधु ही पढ़ सकते है? क्या सचमच ही श्रावको को सूत्र पढ़ने का अधिकार नही है? आगम पढ़ाने के लिये वर्तमान समय मे जो उपधाना की प्रथा प्रचलित है, वह कब से चली? क्यों चली? साधओ को ही आगम पढ़ने का प्रमाण पत्र या पट्टा किसने लिख कर दिया? इस विषय मे मनियो के आचार सूत्रो मे या अन्य ग्रन्थो मे क्या लिखा है? इस प्रकार मुझे इन चारो मुद्दों पर अनुक्रम पूर्वक विवेचन करके इस चर्चा के सम्बन्ध मे अपना निर्णय समाज के समक्ष रखना है।

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