Book Title: Jain Sahitya me Vikar
Author(s): Bechardas Doshi, Tilakvijay
Publisher: Digambar Jain Yuvaksangh

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ 45 किये निर्णय के सम्बन्ध में जरा भी शंका न रहेगी। मेरी यह प्रामाणिक कल्पना है कि माथुरी वाचना के समय ही मुनियों में स्पष्टरूप से दो दल हो गये थे। श्वेताम्बरों मे जो दिगम्बरो के विषय में यह दन्तकथा है कि वीरात् ६०९ में दिगम्बरों की उत्पत्ति है, इस दन्तकथा में बतलाया हुआ समय और माथरी वाचना का समय लगभग समीप का होने के कारण पूर्वोक्त मेरी मान्यता को पुष्टी मिलती है। बस अब तो एक ही मैंग के दो टुकड़े हो गये, तिल तेरे और उड़द मेरे वाली बात हो गई। एक ही पिता के दो पुत्रों ने हिस्सा बाँट कर पिता के घर में एक मजबूत दीवार चिननी शुरू कर दी। दोनों पत्रो को श्रीवर्धमान महावीर पर ममत्व होने के कारण इन दोनों ने अपने २ सिद्धान्त श्री श्रीमहावीर के नाम पर चढ़ा कर आग्रह के आवेश से अनेकान्त मार्ग और अपेक्षावाद के श्रीमहावीर के मूल नियम को तोड़ कर परस्पर शाब्दिक महाभारत शुरू किया। एक ने दूसरे को बोटिक और निह्नव कहना प्रारंभ किया, तब दूसरे ने उसका जवाब भ्रष्ट और शिथिल शब्दों में दिया। दोनो पक्षों ने शीघ्रता से अपने २ पक्ष को प्रबल करने के लिये अपनी अनुचित और एकान्तिक कल्पना को भी श्रीमहावीर के नाम पर चढ़ा कर उस प्रकार के शास्त्र (शस्त्र?) भी घड़ डाले और उसमे भी उनकी जो दशा हई थी वह मैं अपने शब्दो मे न बतला कर आर्य श्री सिद्धसेन के ही शब्दो में बतलाता हूँ___ "ग्रामान्तरोपगतयोरेकामिष सग जात मत्सरयो। स्यात् सौख्यमपि शुनोआंत्रोरपि वादिनोर्न स्यात्।" बाद द्वात्रिंशिका-१ वे दोनो भाई अपनी २ मान्यताओं के आवेशकीधुन में इस बात को भी भूल गए कि मुक्तता का विशेष सम्बन्ध आत्मा और उसकी वृत्तियो के साथ है या कि वस्त्र-पात्र और नग्नता के साथ? दोनो पक्षी ने भविष्य की प्रजा को अपने अपने पक्ष में मुक्ति के पट्टे का दस्तावेज मिलने की अयोग्य और बालिश बात भी करते हुए आगा पीछा न देखा। जिस के परिणाम स्वरूप वर्तमान प्रजा पारस्परिक विरोध से मुक्ति के विपरीत मार्ग पर जा रही है। पानी मे तैरना सीखनेवाला एक बालक भी यह समझ सकता है कि तैरने की कला का अभ्यास करने तक तंबी रखना पड़ता है। परन्तु वह अभ्यास पूरा हुये बाद-एवं तैरने मे पूर्ण दक्षता मिलने पर वह तुबा भाररूप मालूम होता है। परन्त जो अभ्यासी उस कला में अधकचरा और संशयशील है, उसे अपना पूर्णविश्वास हुए बिना वह तुंबा अपनी सुरक्षितता के लिए रखना पडता है। इस तरह के सरल और बाल सुबोध विषय में कोई यह कहे कि

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123