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सकता। इतना लिखकर और इसमें श्वेताम्बर दिगम्बर से लगता इतिहास तथा उन दोनो पक्षों का परिमााम में चारित्र की क्षति बतला कर में अपने प्रथम मुद्दे की चर्चा को यहां पर ही समाप्त करके चैत्यवाद नामक दूसरे मुद्दे की ओर चलता हूँ । पाठक महाशय भी इसी तरफ ध्यान देंगे ऐसी आशा रखते हुये अब मैं प्रस्तुत विषय का उपक्रम करता हूँ।