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द्योतित करता है जिसके विषय में पहले बहत कछ लिखा जा चका है। मझे यह मालूम नहीं होता कि पूर्वोक्त प्रकार से म्यारह अगो में उपयुक्त किया हुआ चैत्यशब्द अपने प्राचीन एवं प्रधान अर्थ को प्रकाशित करने मे जरा भी पीछे हटता हो या उसका वह अर्थ कहीं भी असगत होता हो। भारत के प्राचीन वास्तुशास्त्री श्री वराहमिहिरने अपनी वृहत्संहिता के वास्तुविद्या नामक २५ वें अध्याय में लिखा है कि "चत्ये भय प्रह कृतम्, ग्रहा भूतानि" पृ०६८७) अर्थात् यदि कोई गृहस्थ चैत्य के पास अपना घर बनवायें तो उसे भौतिक भय होने का संभव है। इससे यह बात विशेष दृढ़ होती है कि चैत्यकी जगह मे भूतो का वास होना सभवित है और इस पर से उसका सामीप्यजन्य सूत्रो में जगह २ जो व्यन्तरायतन नाम बतलाया है उसकी यक्तता मे विवाद मालूम नही देता, एव चैत्यशब्द में प्राचीन तथा प्रधान अर्थ को- चितापर चिने हुये स्मारक स्तूपरूप अर्थ को भी कुछ बाधा नही पहुचती।
अब मैं चैत्य के प्राचीन अर्थ को ही दढ बनाने के लिये कितनेक प्रसिद्ध २ कोशो के प्रमाण देता हैं- पाली भाषा के सुप्रसिद्ध कोश मे चैत्य शब्द के सम्बन्ध मे लिखा है -
Chaityam- A religious Building or shrine, a temple, a thupa or Raddhist relic Shrine, a sacred tree, tomb (चैत्य)
Dictionary of THE PALI LANGUAGE BY CHILDERS
P 102 ६ चैत्य जिनौक, तद्विम्बम्, लिखने वाले श्रीहेमचद्र सूरिजी भी चैत्य शब्द के विषय मे लिखते है कि 'चित्य मतकचैत्ये स्यात्' (अनेकार्थक द्विस्वर० ३६६) इस उल्लेख मे उन्होने मृतक चैत्य शब्द ग्रहण करके चैत्य शब्द के उसी अर्थ का उपयोग किया है जो उसका प्राचीन और प्रधानार्थ है।
७'वाचस्पत्यभिधान नामक विशालकाय कोश मे इस शब्द के सम्बन्ध मे निम्न प्रकार से लिखा है "चैत्य न० चित्याया इदम् + अण्, 'सेतु वल्मीक-निम्नास्थि चैत्याद्यैरूपलक्षिता' (याज्ञवल्क्य स्मृति)।
८'शब्दकल्पद्रुम नामक प्रसिद्ध कोश मे चैत्य शब्द के विषय मे निम्न उल्लेख उपलब्ध होता है 'चैत्य न० पृ० चित्यस्य इदम्' 'यत्र यूपा मणिमयात्रैत्याश्चापि हिरण्मयाः' (महाभारत)।
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