Book Title: Jain Sahitya me Vikar
Author(s): Bechardas Doshi, Tilakvijay
Publisher: Digambar Jain Yuvaksangh

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Page 115
________________ कि “बाल स्त्री वृद्धमूर्खाणां नृणां चारित्रकांक्षिणम्। उच्चारणय तत्वज्ञैः सिद्धान्तः प्राकृतः कृत.।। (तत्व निर्णय प्रासाद पृ० ४१३) इस श्लोक पर से यह बात स्पष्ट होती है कि बालक स्त्री, वृद्ध, और मूर्ख लोगों के लिये अर्थात् आबाल गोपाल सभी बिना प्रयास श्रीवर्धमान के प्रवचन का उच्चार कर सकें एवं अच्छी तरह समझ सकें इसी हेतु से आगम को प्राकृत जैसी सर्वदेशीय सरल और मधुरभाषामें संकलित किया गया है। यदि उस प्रवचन आगम को पढ़ने का अधिकार मात्र मुनियों को ही होता तोउन ऋषियों को यह श्लोक लिखने की क्या आवश्यकता थी? प्रभावक चरित्र में कहा है कि चौदह पूर्व संस्कृत भाषा में थे, वे काल के प्रभाव से उच्छिन्न-नष्ट हो गये, इस समय सुधर्मस्वामी भाषित एकादशाग सूत्र हैं जिन्हें उन्होंने बाल, स्त्री, वृद्ध और मूर्ख आदि मनुष्य को भी उनका लाभ मिल सके ऐसी अनुग्रह बुद्धि से प्राकृत में रचे हैं। १ दशवकालिक टीका तथा धर्मविदुवृत्ति,।। २ चतुर्दशाऽपि पृर्वाणि संस्कृतानि पुरा ऽभवन् ।। ११४।। प्रज्ञातिशय साध्यानि तान्युच्छिन्नानि कालत । अधुनैकादशागड चरित सुधर्मस्वामि भाषिता।। ११५।। इसी बात को निम्न लिखित गाथा भी पुष्ट करती है यत उक्तमागमेमुन्तूण दिट्ठिवांय कालिय-उक्कालियग सिद्धत।। थी-बालवायणस्थ पाइममुइय जिणवरेहिं ।। इस गाथा में तो स्त्री और बालको को पढने के लिये अंगो-आगमो को प्राकृत भाषा में रचा गया है ऐसा सबसे स्पष्ट उल्लेख है। तथा विशेषावश्यक और उमकी मलधारीकृत टीका में भी निम्न प्रकार का स्पष्ट उल्लेख मिलता है, जिसमें खुल्लम खुल्ला श्रावको का भी निर्देश किया हुवा है। •१ जइ विय भूयावाए सबम्स वओमयम्म ओआरो। निज्जूहण तहावि हु दुम्मेहे पप्प इत्थीय।। ५५१।। 106

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