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स्पष्ट करने का प्रयत्न सेवन किया है। ज्यों ज्यों अपने इस कमनसीव समाज की गिरी हुई दिशा के विचार मेरे सामने आते हैं त्यो त्यों मुझे विशेष वेदना होती है
और उस वेदना को शान्त करने के लिये मैंने इस प्रकार पूर्वकालीन परिस्थिति का ऐतिहासिक चित्र आपके सन्मुख रक्खा है।जो आप सब इस विषय में विचार करके बड़ों के साथ परामर्श कर हमारे धार्मिक तथा सामाजिक रूढ़िनियम जो वर्तमान मे हमारे उन्नति के रोचक या बाधक हो रहे हैं वे भविष्य में वैचेन रहें इस प्रकार का योग्य प्रयास करेंगे तो मैं इस अपने प्रयास को समझ हुआ समझंगा। अब राष्ट्र से बाके समान धर्मरोषा की हम श्रावकों पर ही आ पड़ी है। इसने गुजरकर या स्थापित शास्त्रों के निरवास पर ही बहुत समझ निराया, परन्तु इससे हमार कुछ भी उद्धार न हुआ, न होता है और अब होता भी नहीं। प्यारे युवक मान लो। आप उठो अब कमर कस लो, स्याने हमारी रस्यहामानेच कभी देश महात्मा गान्धी, जैसे महापुरुष की सलाह लेकर यदि वती और स्वतन्त्रता वाली प्रकृति से भी हम सौन के प्रवचन को साक्षात के मुख से वली यह मेरी अन्तिम प्रार्थना है। सत्य ही शिष्टा पूर्वक मैं यह भी कह देता हूँ कि मै अपने इस निबन्ध को लिखते हुये कहीं खालित हुआ हूँ क्षन्तव्य हूँ। ॐ शान्ति