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होती। और भी देखिये श्रेष्ठिकथा पृ० २२। इस कथा में कथाकारने कथागतशेठ का कुछ विचित्र ही चित्र दखी करने के लिये शेठ के चिने जाते हुये एक घर में जे मंदिर की ईंटका टुकडा वह भी किसी को मालूम न हो इस रीति से दीवार मे चिन दिया। इस काम के परिणाम मे इस बात को न जाननेवाला और न करनेवाला भी शेठ उस घर में रहने से निर्धन हो गया। इस कथा मे तो कथाजोडनेवाले ने कोई नवीन ही कलम-कानून लगाई है जिससे अपराधी तो मुक्त हुआ अपराध न करने वाला और उस बात को न जाननेवाला सर्वथा रिनपराधी दण्डका शिकार बन गया। धन्य है कथाकार की चतुराई को!!! इस कथा को अकृतागम के भयकर दूषण को भी नही समझा। कैसा सन्दर न्याय? इस सम्बन्ध मे मैं ज्यो २ विशेष लिखती हूँ त्यो २ मझे अधिक खेद होता है कि श्रीयत् भाई मोतीचन्द सोलीसीटर कापडिया जो पुराणो का उपहास करते हे वही सज्जन पुराणो को भी पीछे हटानेवाली' ऐसी निर्मल कथाओं को आदर्श कथा किस तरह मानते होगे? ___ मैं यहा पर ऐसी कितनी कथाओ का उल्लेख करू, जहा पर थोडे से अपवादो को छोडकर इसी प्रकार की कथाओ का बडा सागर उछलता हो वहा पर उचितान्चित का पता ही कहा लग सकता है? जिन पाठको को ऐसी कथाओ को देखने की इच्छा हो उन्हें पउमचर्यय, विजयचन्द केवली चरित्र, श्राद्धविधि, उपदेश सप्तति द्रव्यसप्तति और श्रीपालरास इत्यादि मलग्रन्थ या उनके भाषान्तर देखलेने चाहिये और उन्हे पढ़ेबाद यदि पाठको को यह मालूम हो कि मैंने जो कहा है वह असत्य है तो उस विषय मे मुझे लिखने की कृपा करे। कथाओं की बात तो दूर रही किन्तु कितनेक ऐसे ग्रन्थ भी रचे गये हैं और उन्हे उन ग्रन्थकारो ने सीधा श्रीवर्धमान के नाम पर ही चढ़ा दिया है। पउमचर्य के कर्ताने अपने रचे हये पउमचर्य को भी भगवान वर्धमान के नाम पर पटक दिया है। भग्वाती सत्र को सकलित करने वाले ने अपनी सकलना को श्रीवर्धमान और *गौतम के प्रश्नोत्तर मे सकलित किया है!! वसुदेवहिण्डि के जौडनेवाले ने अपनी जोड़ को सुधर्मा और वर्धमान के समय की बतलाई है? वर्धमान देशनाके रचयिता ने अपनी मन पूत देशना का वर्धमान देशना नाम रक्खा है!' इस तरह की रीति का अनेक ग्रन्थो मे अनसरण किया गया है और वह आजतक के ग्रन्थो मे भी किया जाता है। सोलहवी शताब्दी मे होने वाले रत्नशेखरसरि ने अपने बनाये हुये श्राद्धविधि
* समवायाग और नदीसूत्र मे भगवती सूत्र के विषय का वर्णन दिया है, उस मे श्रीवर्धमान और गौतम के प्रश्नोत्तरो के उल्लेख की गधतक नही है।
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