Book Title: Jain Sahitya me Vikar
Author(s): Bechardas Doshi, Tilakvijay
Publisher: Digambar Jain Yuvaksangh

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Page 95
________________ की वृद्धि और जिन प्रवचन का प्रचार है, के लिये इस द्रव्य को व्यय किया जाय तो ऐसा कौन मढ़ या ममत्वी होगा जो उसका निषेध करने की ढीठता करे। हरिभद्रसूरिजी के इन दोनों उल्लेखो से यह साबित होता है कि उस समय के चतुर आचार्यों को समाज से सामाजिक कार्यों के लिये जो द्रव्य मिलता था तदर्थ ही इन चारों शब्दो की योजना की थी एवं इन शब्दो के अर्थ से भी यही बात सिद्ध होती है। इस समय भी धर्मादाय दूकान मे किसी तीर्थंकर का नाम न चलाकर जो आणन्द जी कल्याणजी या डोसाभाई अभय चद का नाम चलाया जाता है इससे भी यह स्पष्ट होता हे कि इस दूकान का प्रबन्ध और धन यह सब कुछ मगलद्रव्य, शाश्वतद्रव्य या निधिद्रव्य है और जब आवश्यकता पडे तब उसे सघ के हितार्थ खर्च सकते हैं, इसमे किसी भी तरह का दोष लगता हो यह शास्त्र से, इतिहास-से, और उपरोक्त प्रमाणों से साबित नही होता। अब तक के मेरे प्रस्तुत उल्लेख मे हरिभद्रजी के ग्रन्थो मे दिये मुर्तिवाद और देवद्रव्य की जडे बतलाने का जो मैंने प्रयत्न किया है उसमे मेरी मान्यतानार प्रमाणिकता पूर्वक मैं इस बात को सिद्ध कर चुका हूँ कि ऊपर बतलाये हुये मध्यममार्ग के अनुयायिो ने, जिसका विधान विधिवाक्य अगसूत्रो मे उपलब्ध नहीं होता वैसे मुर्तिवाद को मात्र एक साधारण और जनहित के लिये नियोजित किया है और वह पीछे से अनेक धर्मो की देखादेखी वृद्धि को प्राप्त होता गया एव अन्त मे ऊपर कथनानुसार पाचवी और छठी शताब्दी के तान्त्रिक मत की प्रबलता हुये बाद वह हमारे समाज मे वज्रलेप जैसा और एकान्त विधेय के समान हो गया है, इतना ही नही बल्कि आधुनिक समय मे तो वह क्लेश का मूलकारण बन गया है। उसके कारण ही आज जैन समाज की प्रशसा वकीलो, बैरिस्टो' और अदालतो मे भी गाई' जा रही है और प्रतिदिन समाज क्षयरोग से पीडित रोगी के समान विकराल काल की तरफ खिंचा जा रहा है। तथापि इस मामाजिक व्यसन से समाज का मर्यादिन रहना तो दूर रहा किन्तु उसके अग्रगण्य आचार्य, मनि और श्रीमन्त इस वाद की एकान्तता मे ही सिद्धशिला का पट्टा मिला समझते है। मझे सिर्फ इसी बात का खेद होता है कि जिन पवित्र निर्ग्रन्थो ने लोकहित की दृष्टि से जिस वाद को नियोजित किया था वही वाद आज हमे अपना ग्रास बना रहा है, अहो! कैसा भीषण परिवर्तन !! कैसा पैशाचिक विकार !! और अनेकान्तवाद की मुद्राछापवालों का भी यह कैसा भयकर एकान्तवाद !! ___ अब मैं एक छोटी सी बात बतला कर अपने इस मुद्दे का यहाँ ही पूर्ण करने का विचार करता हूँ अत आप महाशयो से प्रार्थना करता हूँ कि आप

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