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चैत्यवाद। जैसे पूर्वोक्त प्रकार से सिर्फ फूट पडने के कारण हमारा विशुद्ध जिनकल्प तथा स्थविरकल्प नष्ट हो गया और उसकी जगह परम्पराकल्प एवं रूढ़ीकल्प ने घर कर लिया है वैसा ही चैत्यपूजा के सम्बन्धो भी हआ है। इस विषयकों आपके सामने रखने से पहले मुझे चैत्यके इतिहास से लगता हुआ कितना एक आवश्यक उल्लेख करना है। मात्र जैनशब्दकोश का प्रमाण देकर कहा जाता है कि "चैत्य जिनौक तब्दिम्बम्" (हेमचन्द्र) अर्थात् चैत्य शब्द का अर्थ जिनगृह और जिनविम्ब होता है। कोशका यह प्रमाण मैं भी मानता है, परन्तु सस्कृत साहित्य में ऐसे शब्द सख्याबद्ध हैं कि जिनका अर्थ वातावरण के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। हमारा चर्चास्पद चैत्यशब्द भी उन्हीं शब्दो मे से एक है। जब कभी ऐतिहासिको से शब्दो के इतिहास को पूछा जाता है तब वे उसके वातावरणजन्य अर्थ की ओर ध्यान न देकर उसकी मूल उत्पत्ति, व्युत्पत्ति और प्रवृत्ति की तरफ लक्ष्य करते हैं। उसी प्रकार यदि चैत्य शब्द की मूल उत्पत्ति, व्युत्पत्ति और प्रवृत्ति की तरफ लक्ष्य किया जाय तब ही उसका असली अर्थ हमारे हाथ आसकता है। 'चिता' 'चिति' 'चित्य'
और 'चित्या' इन चार शब्दो मे चैत्य शब्द की जड मिल सकती है। इन चारो शब्दो का अर्थ एक समान है और वह 'चे' होता है, अर्थात् चेंका सम्बन्धी याने उस पर बना हुआ या उसके निमित्त बना हुआ या अन्य किसी आकार मे रही हुई उसीकी सत्ता यादगार उसे 'चैत्य' कहते हैं। जिस जगह मृतक का अग्निसस्कार किया जाता है, वहा उसकी राखपर ही कुछ निशान बनाया जाता है, उसी को चैत्य कहते हैं। चैत्य शब्द का यह मूल एव मख्य अर्थ है और सबसे अतिप्राचीन अर्थ भी यही है। कदाचित् यह अर्थ करने मे मेरी भूल होती हो तो तदर्थ पाठक महाशय निम्नलिखिल प्रमाणो की ओर ध्यान दे- ससार-प्रसिद्ध इंग्लिश विश्वकोश में (Encyclopedia) एन्साइकलोपीडीआ में चैत्यशब्द के लिये निम्न प्रकारसे लिखा है
Chaitya (Sanskırt, an adjectiye form derived from "Chita" a funeral pile)-In accordance with its etymology the word might denote originally anything connected with a funeral pile e.g the bimulus raised over the ashes of the dead person, or a tree marking the spot, Such seems to