Book Title: Jain Sahitya me Vikar
Author(s): Bechardas Doshi, Tilakvijay
Publisher: Digambar Jain Yuvaksangh

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Page 40
________________ 31 "अदुवा तत्थ परक्तमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसति, सीयफासा फुर्सति, तेउफासा फुसंति, दसमसगफासा फुसति, एगयरे, अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति। अचेले लावियं आगममाणे, तवे से अभिसमन्नागए भवति। जहेतं भगवया पवेदियं तमेव अभिसमेच्चा सव्वओ स वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया" (४३४) । ४-"जे भिक्ख एगेण बत्थेण परिवसिते पायवितिएण, तस्स णो एवं भवइबितिय वत्थं जाइस्सामि। से अहेसणिज्जं वत्थ जाएज्जा, अहापरिग्गहियं वा वत्थ धारेज्जा-जाव गिम्हे पडिवत्ने, अहापरिजुन्नं वत्थं परिट्टवेज्जा। अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले लावियं आगममाणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ। जहेयं भगवया पवेइय तमेव अभिसमेच्चा सव्वाओ सव्वत्तए समत्तमेव, समभिजाणिया" (४२९) "से भिक्खु दोहि वत्थेहिं परिवसिते पातततिएहिं, तस्सण णो एवं भवति, ततियं वत्थं जाइस्सामि। से अहेसणिज्जाई वत्थाइंजाएज्जा जावएवं खलु तस्स भिक्खूस्स सामाग्गिय" (४२४) "अह पुण एव जाणज्जा, उवक्ते खलु हेमते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुन्नाइं वत्थाई परिट्ठवेज्जा, अदुवा सतरुतरे, अदुवा ओमचेलए, अदुवा एगसाडे, अदुवा अचेले लाविय आगममाणे, तवे से अभिसमण्णागए भवति। जहेय भगवता पवेदित तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव अभिजणिया" (४२२) ५"से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहेसणिज्जाइ वत्थाइ जाएज्जा, अहापरिग्गहाई वत्थाइं धारेज्जा, णो धोएज्जा, णो रगेज्जा, णो धोय-रत्ताइ वत्थाई धारेज्जा, अपलिउचमाणे गामतरेस् ओमचेलिए। एत खलु वत्थाधारिस्स सामग्गिय" (८३२) ६-तीहि ठाणेहि वत्थं धरेज्जा, तंजहा-हिरिपत्तित दुगुंछापत्तिय, परीसहत्तयं" (१७१) ७"से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अबिकखेज्जा पायं एसित्तए। से ज पुण पायं जाणेज्जा, तंजहा अलाउपाय वा, दारुपायं वा, मट्टियापायं वा, तहप्पगारं पायं। जे निग्गथे तरुणे जाव थिरसंघयणे, से एगं पायं धारेज्जा, णो बीयं" (८४१) १. पृष्ट ६४ से ६५२ १० १८६ से १८७, ३ पृ० ८३, ४ पृ०८१-७९-८०५ पृ० १९१६ स्थानाग सूत्र समितिवाला पृ० १३७ ७ पृ० १९४ आवाराग सूत्र (रवजी भाई वाला मूल और भाषान्तर) ८ पृ० १३९ स्थानांग सूत्र (समितिवाला)

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