Book Title: Jain Sahitya me Vikar
Author(s): Bechardas Doshi, Tilakvijay
Publisher: Digambar Jain Yuvaksangh

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Page 39
________________ 30 निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थ तीन प्रकार के पात्रों को उपयुक्त कर सकतें हैं, तूंबी पात्र, काष्ठ पात्र और मृत्तिका पात्र, पात्र रखने के कारण बतलाये हुये स्थानांगसूत्रकी बारहवी शताब्दी की रचित टीकामें भी निम्न उल्लेख मिलता है। rt. . "असक्त, बाल, वृद्ध, नवीन दीक्षित भिक्षु, अतिथि गुरू और सहनशील वर्ग इन सबके लिये पात्र रखने की आवश्यकता है, तथा साधारण साधु समुदाय के लिये और जो साधु बिना पात्र निरवद्य रीति से आहार न कर सकता हो उसके लिये भी पात्र की आवश्यकता है।" १ - " जे अचेले परिवुसिए, तस्संणं भिक्खुस्स गो एवं भवइः - परिजिन्ने में वत्थे, बत्थे जाइस्सामि, सुत्तं जाइस्सामि, सूइं जाइस्सामि, संस्सिामि, सीविस्सामि, उक्तसिस्सामि, बोक्तसिस्सामि, परिहरिस्सामि पारणिस्सामि । (३६०) १८. 'अदुवा तत्थ परक्तमतं भुज्जो अचेलं तणफास फुसति, सीयफासा फुंसंति, तेउफासा फासंति, दंसमसगफासा फुर्सति, एगयरे, अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति । अचेले लाघवं आगममाणे तवे से अभिसमाoणागए भवति" (३६१) "जहेयं भगवता पवेदित तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए . समत्तमेव समभिजाणिया " । ( ३६२) २ - अहावरा तच्चा पडिमा से भिक्खुवा भिक्खूणीवा, से जं पुण वत्थ जाणेज्जा । तजहा - अतरिज्जग वा उत्तरिज्जगंवा, तहप्पगारं वत्थ सथं वा ण जाज्जा, जावपडिग्गहेज्जा । तच्चा पडिमा " (८१३) अहावरा चउत्था पडिमा से भिक्खु वा भिक्खूणी वा उज्झियधम्मिय वत्थं जाइज्जा । ज चऽण्णे बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-बाणीमगाणावकंखति । तहप्पगारं उज्झियधम्मियं वत्थं सय बाणं जाणेज्जा, पेरा वा से देज्जा, फास्य जाव पडिग्गहेज्जा । चउत्था पडिमा " (८१४ ) ३ " जे भिक्खू अचेले परिवसिते, तस्स णं एवं भवति, चाएमि अहं तणफास अहियासित्तए, सीयफाय अहियासित्तए, तेउफासं अहियासित्तए, दंसमंसगफासं अहियासित्तए, एगयरे, अन्नतरे विरूवरूवे फासे अहियासित्तए, हिरिपडिच्छादणं च णो संचाएमि अहियासित्तए, एवं से कप्पति कडिवणं धारित " (४२३)

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