Book Title: Jain Sahitya me Vikar
Author(s): Bechardas Doshi, Tilakvijay
Publisher: Digambar Jain Yuvaksangh

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Page 45
________________ 36 मानता कि उसका दूसरा त्यागी पड़ौसी उसके आचारण का अनुसरल करने मे जरा भी बिलम्ब करेगा। कठिन आचारो को पालन करने में, लज्जा को जीतने मे, शरीर को वश रखने मे और इसी तरह की अन्य भी त्याग की अनेक बातो मे मनुष्य स्वभावसे ही शिथिल देख पडता है। इसी कारण वह अपनी अनकलता के अनुसार आचारो नियमो एव क्रियाओ को पालन करते हुये यदि धर्मचरण कर सकता हो तो वैसे सुकर नियमो की ओर वह झट झुक जाता है और जहा भूखा रहने को कहा जाता हो वस्त्र रहित होकर आचार पाला जाता हो तथा जहा पर शरीर के प्रत्येक सुभीते का निरोध किया जाता हो उस तरफ कोई विरला ही मुश्किलसे झुकता है। अगसूत्र ग्रन्थो मे जहा तक मैं देख सका हू श्रीवर्धमान जैसे समर्थ योगी पुरूष के समक्ष भी नम्र होने मे श्रीपार्श्वनाथ के सन्तानीय हिचकिचाये हैं। उन्होने श्रीवर्धमान की परीक्षा-मात्र कोरी वचन पराक्षा लेने के लिये कितने एक पश्न पछे हैं और जब उनसे उनका समाधान हो गया एव उसमे भगवान पार्श्वनाथ के सिद्धान्त की साक्षी मिली तब ही उन्होने श्रीवर्धमान को मस्तक झकाया है। सूत्रो मे जहा जहा पर श्रीवर्धमान और उनके निर्ग्रन्थो के समागम होने का वर्णन आता है वहा पर सब जगह निर्ग्रन्थो ने उन्हे प्रदक्षिणा देकर वन्दन करके अपने वक्तव्य या प्रष्टयका प्रारभ किया है, इस तरह की सकलमा प्राप्त होती है, इतना ही नही बल्कि स्कदक जैसे अन्य मतावलम्बी तापस ने भी वर्धमान को मिलते समय जैन निर्ग्रन्थों के योग्य उनका सत्कार किया है, यह उल्लेख भी भगवती मूत्र के दूसरे शतक में विद्यमान है। परन्तु जहाँ पर पार्श्वनाथ के सन्तानीय मुनियो का वर्णन आता है वहाँ सर्वत्र उन्होने वर्धमान वा उनके स्थविरो को मिलते ही तुरन्त साधारण सत्कार करने तक का भी विवेक प्रगट किया हो ऐसा उल्लेख नहीं मिलता। परन्त उन्होने वर्धमान या उनके मुनियो के पास जाकर उनके साथ बातचीत करके, उन्हे पहचानने के बाद वन्दनादि करने और उनका धर्म स्वीकृत करने का उल्लेख मिलता है। सूत्रो मे ऐसे अनेक उल्लेख विद्यमान हैं। उनमे से एक दो उल्लेख की ओर मैं पाठको का ध्यान खीचता हूँ- भगवती सूत्र के नवमे शतक के बत्तीसवे उद्देशक मे एक गागेय नामक पार्श्वनाथ सन्तानीय की कथा आता है, उसमे इस प्रकार बतलाया गया है कि १ "एक वर्धमान वाणिज्य ग्राम के दूतिपलाश नामक चैत्य मे पधारे थे, वहाँ पर उनका उपदेश सुनने के लिये वहाँ का समाज एकत्रित हुआ था और उस सदपदेश को सनकर वह लोक समूह वापिस अपने अपने स्थान पर चला गया था। उस ग्राम मे वर्धमान को गागेय नामक पार्श्वनाथ अणगार मिले थे, वे वर्धमान के पास गये थे और उनके नजदीक बैठ कर उन्होने वर्धमान को कितनेक प्रश्न पूछे थे। अपने

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