________________
प्राक्कथन
संभव हो पाया कि निर्वाण महोत्सव वर्ष की पुण्यदायिनी महावीर जयन्ती पर यह ग्रंथ हिन्दी में प्रकाशित हो गया। भिन्न-भिन्न अध्यायों का भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने अनुवाद किया है, अतः संशोधन के समय यथासंभव एकरूपता लाने का प्रयास किया गया है । इस ग्रंथ की पाद-टिप्पणियों का प्रस्तुतीकरण भारतीय मानक संस्था द्वारा निर्धारित नियमों (मानक संख्या IS : 2381-1963) के अनुसार किया गया है जो पुस्तकालय-विज्ञान की कुछ गिनी-चुनी पुस्तकों को छोड़कर भारतीय प्रकाशन-जगत में प्रथम प्रयास है।
अनुवादकों में श्री राजमल जैन, श्री गोपीलाल अमर और डॉ० जगदीश चन्द्रिकेश के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । अनुवाद-कार्य में जिनका सहयोग प्रांशिक रूप से प्राप्त हुआ है, वे हैं--श्री रमेशचन्द्र शर्मा, श्री हीरा प्रसाद त्रिपाठी, श्री राधाकान्त भारती, और श्रीमती शोभिता जैन।
भारतीय ज्ञानपीठ के सहयोगियों में श्री वीरेन्द्रकुमार जैन ने कलाग्रंथ के अंग्रेजी संस्करण के प्रकाशन में तो सहयोग दिया ही, हिन्दी अनुवाद का मूल से मिलान और संशोधन की प्रक्रिया में भी हाथ बंटाया। उन्होंने ग्रंथ की अनुक्रमणिका तैयार की है जो ग्रंथ के तीसरे खंड में जा रही है। उनकी कार्यक्षमता, गतिशीलता और निष्ठा सराहनीय हैं। प्रूफ-संशोधन का अत्यंत कठिन काम ज्ञानपीठ के प्रकाशन-सहयोगी श्री भोलानाथ बिम्ब ने किया । अत्यल्प समय में प्रेस-कापी और प्रूफों के परिमार्जन का काम ज्ञानपीठ के सहयोगियों के सहारे संभव हो पाया है। व्यक्तिश: और सामूहिक रूप से वे सब सराहना और धन्यवाद के पात्र हैं। श्री गोपीलाल अमर और डॉ० गुलाबचन्द्र जैन निर्वाण-महोत्सव की अन्य प्रकाशन-योजनाओं में सहयोगी रहे हैं ।
ग्रंथ के मद्रक, कैक्सटन प्रेस के संचालक श्री अोमप्रकाश का प्रयत्न सराहनीय है कि उन्होंने इतने कम समय में मद्रण का इतना बड़ा दायित्व तत्परता के साथ निभाया। उन्हें तथा उनके सहयोगी संचालकों और प्रेस के कर्मचारी-वर्ग के प्रति हार्दिक धन्यवाद व्यक्त करना मेरा कर्तव्य है।
यदि इस कला-ग्रंथ के तीनों खण्डों ने पाठकों को जैन कला के महत्त्व का दिग्दर्शन कराया, उनकी सांस्कृतिक रुचि में एक नया आयाम जोड़ा, और उन्हें सुख प्राप्त हुआ तो ज्ञानपीठ अपने इस प्रयास को सार्थक मानेगी। यों, भगवान महावीर के पावन निर्वाण महोत्सव से श्रद्धांजलि के रूप में संबद्ध हो जाना, इस प्रकाशन के लिए कम सौभाग्य की बात नहीं।
नई दिल्ली महावीर जयन्ती, १९७५
लक्ष्मीचन्द्र जैन मन्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ
(११)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org