Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 19
________________ अङ्क ९-१०] विचित्र ब्याह । कारखानोंमें मशीनोंका प्रयोग करनेमें भी कि- था ? या किसी साहसी पुरुषने ही उपने उदातना विरोध हुआ था ! पृथ्वीके भ्रमणका हरणसे इस सुधारकी नीव रक्खी ? विदेशसिद्धान्त स्थिर करनेवाले वैज्ञानिकोंको कितना यात्रा काश्मीरी पंडितोंमें क्या सर्व सम्मतिसे कष्ट सहना पड़ा था ! चेचकका टीका कितने " स्वीकार हो गई तब ही किसीने विलायत जानेका साहस किया अथवा विपरीत इसके पहले विरोधके बाद प्रचलित हुआ है ! किसी साहसी पुरुषके वहाँसे लौट आने ही पर जब इन साधारण बातोंका यह हाल है तब यह मत स्वीकार किया गया ? जो बातें मनुष्यके जीवनसे निकट सम्बन्ध । रखती हैं उनकी क्या कथा ! क्या तीर्थकर, इन सब बातोंमें इतिहास स्पष्ट कहता है कि बुद्धदेव, ईसा मसीह या मुहम्मद साहिब इस साधारण मनुष्य केवल अनुकरण कर सकते हैं। बातका इंतजार करते रहे थे कि लोग उनके मन नवीन बातका आरंभ सदा कोई एक साहसी को पहले अच्छा समझने लगें तब उसका व्यक्ति ही करता है । समाज सर्व सम्मतिसे.. कभी कोई नया नियम नहीं बनाता। उसे तो खुल्लम खुल्ला प्रचार करें और क्या ऐसा न करनेसे उनमेंसे अनेकोंको दुःसह कष्ट नहीं सहने ऐसा जबर्दस्ती करना पड़ता है । अतः यदि पड़े ? और क्या उन्ही कष्टोंका परिणाम यह सुधार अभीष्ट है तो जिन लोगों में ऐसे नये कार्य नहीं है कि आज लाखों करोड़ों मनुष्य उनके करनेका साहस है उन्हें जो बातें रोकती हैं, जो उपदेशोंसे लाभ उठा रहे हैं ? आधुनिक बातोंको जो लोग उनका उत्साह घटाना चाहते हैं। वे लीजिए। पारसियोंमें जब पर्दा दूर किया गया तब अवश्य ही हानिकर हैं । उनसे सचेत रहना क्या कोई पंचायत बैठकर ऐसा एक नियम बना अवश्य ही बुद्धिमानी है। विचित्र ब्याह । . [ले०, श्रीयुत पं० रामचरित उपाध्याय ।] चतुर्थ सर्ग। जैसे तैसे रामदेव की, क्रिया सुशीलाने कर दी, कुछी दिनों में उसके मनमें, स्वस्थिति आशाने कर दी। विस्मृतिने भी दिया सहारा, रामदेव कुछ भूल गये, हरिसेवकने उसके उरमें, उपजाये सुख-मूल नये ॥१॥ आशाका है अजब तमासा, मृतमें जीवन भरती है, विस्मृति उसके पूर्व दुखोंको झटपट आकर हरती है। दोनों ही हैं मनो सहेली, दोनों ही रहती हैं साथ। ___दुखी जन्तुके सँगमें दुखको; दोनों ही सहती हैं साथ ॥२॥ कहा सुशीलासे आशाने, हरिसेवक पण्डित होगा, .. उससे फिर सुख तुझे मिलेमा, देश मात्र मण्डित होगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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