Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 93
________________ अङ्क ९-१०] विविध प्रसङ्ग । तरह झूठा किस्सा गढ़ लेनेका कोई कारण नहीं चर्चिनाम् ' सिद्धान्तके माननेवाले हैं । ऊपरका मालूम होता । जो लोग पुनर्जन्मले सिद्धान्तका नोट इस बातका बहुत बड़ा प्रमाण है । अध्ययन करनेवाले हैं, उनके लिए यह विचार आपने उठाई कलम और लिख दिया कि करने योग्य घटना है।" काशीरामके जीवने २५ रोज तक कोई पशुइस उद्धृत लेखके नीचे ब्रह्मचारी शीतल- पर्याय धारण कर ली होगी। यह नहीं सोचा कि प्रसादजीका एक नोट लगा हुआ है। उसको मनुष्यों और पशुओंको कुछ समयतक गर्भमें हम यहाँ अक्षरशः उद्धृत करते हैं-" ऊपरका भी रहना पड़ता है । जिस समय किसीका जन्म बयान असत्य नहीं मालूम होता; यह संभव है होता है, ठीक उसी समय वह दूसरे स्थानसे कि २ महीने २५ रोज तक इसके जीवने कोई च्युत होकर आया हुआ नहीं होता; किन्तु पशुपर्याय धारण कर ली हो । जैनसिद्धान्तसे उसके कुछ महीनों पहलेसे वह गर्भमें आ गया ऐसा होना व जातिस्मरणद्वारा पूर्व बात याद होता है। और पशुपर्यायकी तो एक ही कही। आना प्रमाणित है।" ___एक ही पर्यायको धारण करनेके लिए तो दिन ___ इस नोटके पढ़ चुकने पर पाठकोंको विचार पूरे नहीं हैं, पर आपे बीचमें एक पशुपर्याय करना चाहिए कि जैनधर्मके पुनर्जन्मके सिद्धा- और भी धारण करा देते हैं । हम यह नहीं न्तसे उक्त घटना कहाँ तक मेल खाती है । सुख- कहते हैं कि ब्रह्मचारीजी पुनर्जन्म-सम्बन्धी इन लालका जन्म ३१ जनवरी सन् १९०९ को मोटी मोटी बातोंको जानते नहीं हैं; नहीं वे.. हुआ है और जैसा कि उसकी माँने कहा है, मैनधर्मके इस सिद्धान्तसे अच्छी तरह परिचित वह ९ महीने पूरे होने पर १० वें महीने में पैदा होंगे; परन्तु एक तो उन्हें अधिक विचार करहुआ है । अर्थात् १ मई सन् १९०८ के लगभग नेका अभ्यास नहीं है, दूसरे वे इस प्रकारके प्रमा वह अपनी माताके गर्भ में आया होगा। जैन- गोंसे-जिनपर वर्तमानकी जनता कुछ अधिक सिद्धान्तके अनुसार गर्भाधान होनेके साथ ही विश्वास करती है-भरपूर लाभ उठा लेना माताके गर्भस्थानमें जीवकी स्थिति हो जाती है। चाहते हैं और इस लाभके लोभमें वे किसी चरक, सुश्रुत आदि आयुर्वेदके ग्रन्थोंका भी 'ढीले-ढाले । ठीक न बैठते हुए प्रमाणको भी यही सिद्धान्त है। अब देखिए कि काशीरामकी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहते । जैनमित्रमें इस हत्या कब हुई थी ? वह ६ नवम्बर १९०८ को प्रकारके नोट अकसर निकला करते हैं और अर्थात् सुखलालके गर्भ में आनेके कोई ६ महीनेके आशा है कि आगे भी निकलते रहेंगे। बाद मारा गया है । तब क्या वह मरनेके पहले ही गर्भमें आ गया था ? ब्रह्मचारीजी जैन- ५ रीति-रवाजोंकी गुलामगिरी। मित्रका सम्पादन इतनी जल्दी करते हैं, और मनुष्य धर्मकी उतनी परवा नहीं करता, उन्हें जैनसिद्धान्त पर चलता-मलिनता-अगाढ़ता- जितनी कि रीति-रवाजोंकी करता है । वह रहित ऐसा — भयंकर ' विश्वास है कि उन्हें धर्मका नहीं किन्तु. रीति-रवाजोंका गुलाम है। किसी विषय पर अधिक विचार करनेकी आव- संसारमें धर्मके नामसे जितने काम हुए हैं, या श्यकता ही नहीं मालूम होती । विषयके भीतर होते हैं, मत समझो कि वे सब धर्मके ही लिए प्रवेश करना-कुछ गहरे पैठना-उनकी समझमें हुए हैं । नहीं, यदि विवेकदृष्टि से देखोगे, तो व्यर्थ है । वे पं० आशाधरके 'कुतः श्रेयोऽति- उनमेंसे अधिकांशके भीतर यह रीति-रवाजोंकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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