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अङ्क ९-१०]
विविध प्रसङ्ग।
हमारी गवर्नमेन्ट ने भी उस ओर विशेष ध्यान शालिचूर्ण वा " की तरह उस शुद्ध चीजसे नहीं दिया था। किन्तु हर्षकी बात है कि अपना काम निकाल लें; तभी इन धूर्त व्यवहमारे देशके कुछ समझदार लोगोंने इस सायियोंका मुँह काला और पेट पतला होगा। अत्यन्त आवश्यक आन्दोलनको उठाया है घी ही नहीं, और भी खानेकी जिन जिन चीऔर यथानियम गवर्नमेन्टने उनका साथ दिया जोंमें मिलावट होती है उसके प्रतीकारके लिए हमें है । जो लोग समाचारपत्र पढ़ना पाप नहीं सम- सचेष्ट होना चाहिए । तभी अल्पायु भारतवासियों झते उन्हें यह विदित ही होगा कि कलकत्तेमें की रक्षा होगी। -ज्वालादत्त शर्मा । (वैद्यसे) मिश्रित घीके विषयमें कैसा आन्दोलन हुआ है । हम चाहते हैं कि इस तरहका आन्दोलन ३ घतके बदले दूसरे पदार्थ ।। हर प्रान्त, हर शहर, हर गाँव और हर घरमें इस समय जब कि शुद्ध घृतका मिलना बड़ा हो । जिन चीजों पर हमारा स्वास्थ्य दुष्प्राप्य हो गया है और अनेक प्रकारके हानिनिर्भर है, जो हमारे रक्तको बनाती हैं, उनमें कारक और अभक्ष्य पदार्थों के द्वारा बनाया हुआ यदि कोई मिलावट करता है-नहीं, विष मिलाता घृत नामक विषाक्त पदार्थ सर्वत्र प्रचलित हो है तो हमें उसके इस आचरण पर जितना क्रोध रहा है, ऐसी अवस्थामें घृतका सर्वथा त्याग आये थोड़ा है । हमें उसके प्रतीकारके लिए कर देना ही उचित जान पड़ता है । घृतके कोई बात उठा न रखनी चाहिए। यदि अच्छी बदले दूसरे पदार्थों से भी काम चल सकता है। तरह आन्दोलन किया जाय, हिन्दू मुसलमानों- तिलीका तेल, मूंगफलीका तेल, नारियलका को बता दिया जाय कि घीमें चर्बी मिलती तेल, आदि कई तेल घृतके बदले काममें लाये है, गाय भैंसकी ही नहीं सुअर और साँप तक- जा सकते हैं । यद्यपि मिलावटी घृतमें भी ये की चर्बीका उसमें सपिण्डन होता है तो कोई पदार्थ मिलाये जाते हैं, परंतु उसमें कई पदार्थोंकारण नहीं कि भारतकी ये धर्मप्राण प्रधान का विरुद्ध संयोग होनेसे वह विषके समान जातियाँ इस तरहके घी या किसी अन्य पदार्थ- हो जाता है । उपर्युक्त तेल पृथक् पृथक् रूपमें को न छोड़ें । पर इसके लिए कुछ स्वार्थत्याग- ही अच्छा गुण करते हैं । तिलीका तेल घृतकी आवश्यकता है। उससे भी अधिक स्वाद- की अपेक्षा अधिक बलकारक है । इस लिए त्यागकी है । जो लोग बाजारकी मिठाइयाँ लोग इस तेलका व्यवहार अधिकतासे करते हैं। खाते हैं उन्हें चाहिए कि अपनी इस बुरी आदत- तथापि तेल अधिक उष्ण और उग्रवीर्य्य होनेको ठीक करें तभी तो ऊँची दूकानधारी हुल. के कारण सब प्रकृतिके मनुष्योंके अनुकूल वाइयोंको फीकी मिठाइयाँ बनानेकी धूर्तता नहीं पड़ता। सरसोंका तेल भी खानेमें अच्छा छोड़ना पड़ेगी। हमें चाहिए कि उत्सव या है, पर यह तिलके तेलसे भी अधिक तीक्ष्ण त्यौहारोंको खूब सादगीसे सम्पन्न कर लें । वृथा और उष्ण है; इस कारण सब लोग इसका उपआडम्बरके चक्रमें पड़ कर धर्मकी हानि न योग नहीं कर सकते । धुले तिलौका तेल करें। देशके वैज्ञानिकोंका कर्त्तव्य है कि वे साधारण तिलोंके तेलकी अपेक्षा अधिक सौम्य घीके जोड़की कोई चीज बतावें । जिन्हें शुद्ध है। इस लिए यह वैसी उष्णता, दाह आदि घी मिलता है वे आनन्दसे उसे खायें, किन्तु विकार पैदा नहीं करता। बहुत लोग तेलको जो उसे नहीं खरीद सकते हैं वे " अभावे नमक, क्षार, हलदी आदि पदार्थोके द्वारा फाड़
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