Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 53
________________ अङ्क ९-१०] हानिकी कल्पना। ४२५ यह युक्ति देते हैं कि, जो लोग अपनी लड़- संख्यामें इतनी कमी हुई है । यह देखा जाय कि कियोंको बेचते हैं उनके लिए विक्रीका क्षेत्र जिस समयकी बात कही गई है उस समय बढ़ जायगा और इस कारण वे जिस जातिमें मुरादाबाद जिलेमें ब्याहे, कुंआरे और रँड्डुए पुरुषोंकी अधिक धन देनेवाले मिलेंगे उसी जातिमें अपना तथा ब्याही, कुंआरी और विधवा स्त्रियोंकी संख्या काम बनानेकी कोशिश करेंगे, परन्तु यह युक्ति कितनी थी और उसके बाद पाँच दश वर्षमें उस इस प्रश्नके एक ही ओर दृष्टि डालकर की जाती संख्यामें कितना अन्तर पड़ गया। इसका हिसाब है; यह नहीं सोचा जाता कि जब बेचनेवालेके भी प्रकट किया जाय कि यह नया सम्बन्ध जारी लिए विक्रीका क्षेत्र बढ़ जाता है तब खरीददारोंके होनेपर मुरादाबादकी कितनी लड़मियाँ बाहर गई लिए भी तो खरीद करनेका क्षेत्र छोटा नहीं रहता और बाहरसे कितनी वहाँ आई । इस तरह पूरी है। जो रुपये देकर ब्याह करना चाहेंगे उनके जाँच किये बिना ऐसी बातों पर विश्वास नहीं किया लिए फिर लड़कियाँ भी तो बहुत मिलने लगेंगी; जा सकता । यह बहुत संभव है कि कुँआरोंकी वे बेचनेवालोंके बढ़ते हुए लोममें सहायक संख्या और ही किन्हीं कारणोंसे बढ़ गई हो क्यों होंगे ?" और समझ यह लिया गया हो कि इस नये सम्ब__ श्रीयुत पं० पन्नालालजीने अपने लेखमें मुरादा- न्धसे ऐसा हुआ है । एक तो ऐसा हो नहीं सकता बाद जिलेके खण्डेलवालोंका एक दृष्टान्त दिया है कि मुरादाबादकी लड़कितमाहरवालोंने ले जिसका सार यह है कि “उक्त जिलेके खण्डेवा- तो ली हों, पर दीं बिलकुल ही न हों। क्योंकि लोके साथ देहली, अलीगढ़ आदिके खण्डेलवा- मुरादाबाद जिलेमें भी तो रईसों और धनियोंका लोंका बेटीव्यवहार नहीं होता था। क्योंकि अभाव नहीं है । उन्होंने जब बाहरके रईसोंको मुरादाबादवाले दो या तीन गोत टालकर ही अपने लड़कियाँ दी होंगी तब ली भी तो होंगी, सम्बन्ध कर लेते थे, पर देहली अलीगढ़वालोंमें इसी प्रकार मुरादाबाद जिलेमें जिस प्रकार निर्धन चार गोत्र टालकर विवाह होते थे। कुछ लोगोंके लोग हैं, उसी प्रकार अलीगढ़ आदिमें भी उनका प्रयत्नसे मुरादाबादवालोंने अपने यहाँ चार गोतों- अभाव नहीं है । अलीगढ़ आदिवाले धनियोंने का टालना स्वीकार कर लिया और तब उनका कुछ यह प्रतिज्ञा तो की ही न होगी कि हम देहली आदि लोगोंसे विवाहसम्बन्ध होने मुरादाबाद के ही गरीबोंकी लड़कियाँ लायेंगे, अपने लगा । इसका फल यह हुआ कि, मुरादाबादके आसपासके गरीबोंकी नहीं लेंगे, जिससे कि यह रईसोंकी जितनी लड़कियाँ थीं वे तो देहली समझ लिया जाय कि मुरादाबादके गरीबोंकी अलीगढ़ आदिके रईसोंके यहाँ पहुंच गई और सारी लड़कियाँ अलीगढ़ आदिमें चली गई । और इधरके निर्धनोंके लड़के कोरे रह गये । उनके थोड़ी देरके लिए यदि यह भी मान लिया जाय पास इतना धन नहीं कि वे अलीगढ़ आदिसे कि मुरादाबाद जिलेमें कुँआरोंकी संख्या बढ़ गई, लड़कियाँ ला सकें। बस, यही एक मात्र कारण है तो इसके साथ यह भी मानना पड़ेगा कि, अलीकि मुरादाबाद मिलेके लड़के कुंआरे रह जाते गढ़ आदिके खण्डेलवालोंमें कुँआरोंकी संख्या हैं।" हमारी समझमें यह दृष्टान्त तब तक प्रमाण- कम हो गई होगी। क्योंकि यह तो निश्चय है के रूपमें ग्रहण नहीं किया जा सकता, जबतक कि खण्डेलवाल जातिमें अधिक उम्रतक या वहाँके खंडेलवालोंकी संख्याके अंक उपस्थित जीवनभर कुमारी रहनेवाली लड़कियाँ नहीं हैं। करके यह न समझा दिया जाय कि कुँआरोंकी अर्थात् लड़कियाँ तो मुरादाबाद और अलीगढ़ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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