Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 55
________________ पुरुष अङ्क ९-१०] हानिकी कल्पना। तमाम जैन जातियोंमें बेटीव्यवहार होने होगी, कन्याविक्रय कम होगा, और इसी तरहके लगेगा, तो यह स्थिर और निश्चित है कि कुंआरे और भी बहुतसे लाभ होंगे, जिनका विचार हम पुरुषोंकी संख्या घटेगी । विवाहका क्षेत्र बढ़ जैनहितैषी भाग ११ पृष्ठ ६२८ के लेखमें विस्ताजानेसे वर्तमानमें जितने पुरुषोंका विवाह हो रके साथ कर चुके है। सकता है, उतनेसे अधिक पुरुष ब्याहे जा छोटी छोटी जातियोंके बचानेके लिए-जिनकी सकेंगे । इस बातको अच्छी तरह समझनेके जनसंख्या बहुत ही थोड़ी रह गई है-इससे लिए कल्पना कीजिए कि तमाम जैन जातिके अच्छा और कोई भी उपाय नजर नहीं आता । विवाहयोग्य स्त्रीपुरुषोंकी संख्या दश हजार गत आसौज सुदी १० के जैनमित्रमें 'बुढेले' है और वह नीचे लिखी पाँच जातियोंमें नामक जैन जातिकी जनसंख्याका एक कोष्टक विभक्त है:-- प्रकाशित किया गया है । उससे मालूम होता कन्या है कि इस जातिमें पुरुषोंकी संख्या ४५४ और खण्डेलवाल १४०० ११०० स्त्रियोंकी ३७२ है। इनमेंसे १७७ पुरुष और परवार १०६० ९४० १७८ स्त्रियाँ विवाहित हैं । विधवाओंकी संख्या अग्रवाल १४५० १५५० ___ ९४ है। ४५ बर्षकी उमरसे कमके ७३ पुरुष. पद्मावती पुरवार ७०० और १३१ बालक इस तरह कुल २०४ पुरुष ४०. . - विवाहयोग्य हैं, परन्तु कन्याओंकी संख्या कुल ---- १०० ही है । अर्थात् इस जातिके १०४ पुरुषोंके ५३१० भाग्यमें जीवन भर विना स्त्रीके रहना लिखा है। अब यदि इन सब जातियोंमें अपनी अपनी पाठक सोचें कि ऐसी दशामें यह जाति कितने जातिके ही भीतर विवाह होगा तो खंडेलवालोंमें समयतक अपना अस्तित्व बनाये रह सकती है। ३००, परवारोंमें १२०, पद्मावतीपुरवारों में यदि इसे अन्य जातिवालोंके साथ ब्याह करनेकी १०० और हूमड़ोंमें २०० पुरुष नियमसे आज्ञा मिल जायगी, तो इनमेंसे बहुतसे पुरुष अविवाहित रहेंगे । अर्थात् चाहे जो उपाय किया ब्याहे जा सकेंगे क्योंकि अन्य बड़ी बड़ी जातिजाय, इतने लोग कुँआरे रहेंगे ही। क्योंकि योंमें कन्याओंकी संख्या इतनी कम नहीं है। प्रत्येक जातिमें लड़कियोंकी संख्या कम है। इसमें तो आधेसे भी अधिक कम है। .. और अग्रवालोंमें पुरुषोंकी संख्या कम है, इसलिए यह संभव है कि दो चार जातियोंकी उनमें १०० लड़कियाँ कुंआरी रहेंगी । इस परिस्थिति ऐसी हो कि उन्हें इस पारस्परिक तरह सब जातियोंमें ७२० पुरुष और १०० व्यवहारसे कुछ हानि होनेकी संभावना हो, पर लड़कियाँ कुँआरी रहेंगी, परन्तु यदि सब वह हानि ऐसी नहीं हो सकती कि उसका कोई जातियोंका परस्पर विवाह होने लगेगा तो प्रतीकार ही न हो और उसके कारण सारे जै५३१०--४६९०=६२० पुरुष ही कुंआरे रहेंगे नसमाजकी भलाई के इस व्यवहारको रोक रक्खा और लड़की एक भी न रहेंगी, अर्थात् पार- जाय । किसीएक जातिकी रक्षाके लिए, जैसा स्परिक विवाहसे २०० पुरुष और १०० लड़कियाँ कि ऊपर पद्मावतींपुरवारोंके सम्बन्धमें कहा अधिक ब्याही जा सकेंगी। इसके सिवाय अन- गया है, खास नियम भी बनाये जा सकते हैं मेलविवाह कम होंगे, पारस्परिक प्रीतिकी वृद्धि और उससे वह हानिसे बचा ली जा सकती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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