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जैनहितैषी -
[ भाग १३
जैन समाज के नाश होनेके मुख्य मुख्य हाहाकारसे आकाश भी गूँज उठा है। निर्धनता के कारण ये हैं:
१. प्लेग आदि रोग,
होनेसे समाजको पुष्टकारी भोजन नहीं मिलता । दूध और घी जिन पर कि पूर्वकाल में भारतवासियोंका जीवन निर्भर था, आजकल भारतवर्षसे
२ निर्धनता, या दरिद्रता,
३ स्वास्थ्य ( तन्दुरुस्ती ) की ओरसे उदा- बिदा हो रहे हैं। इनके न मिलने से स्त्री पुरुष सीनता,
४ बाल्यविवाह,
५ वृद्धविवाह,
६ व्यभिचार,
७ पुरुषोंका अविवाहित रह जाना, ८ छोटी छोटी जातियोंका होना और अपनी जातिके अतिरिक्त अन्य जातिमें विवाह न करना, ९ विवाह के समय बहुत से गोत्रोंका टालना १० एक ही जातिमं ऊँच नीच घर और ११ आर्यसमाजी हो जाना मिल जाना ।
दुर्बल हो गये है और दुर्बलता के कारण ये शीघ्र रोगों के पंजों में पड़ जाते हैं । निर्धन होनेसे रोगोंका इलाज नहीं किया जा सकता, अपनेको मृत्यु के हाथमें तत्काल ही सौंप देना पड़ता है। यही कारण है कि भारतवासी यूरोप आदि देशो की तरह संख्या में नहीं बढ़ते । जैनी हिन्दुओं और मुसलमानोंकी अपेक्षा अधिक धनवान हैं, इससे निर्धनताका प्रभाव जैनियों पर कुछ कम पड़ा होगा । अब रहा यह कि, फिर हमारी हिन्दू मुसलमानों की अपेक्षा अधिक घटी क्यों हुई, इसका उत्तर यह है कि, अधिक घटीके कारण दूसरे ही हैं ।
तथा हिन्दूओंमें
जैनजाति किसी समय धनवान् श्री, पर अब नहीं है। अब तो यह दिन पर दिन निर्धन होती जाती हैं। इस निर्धनतासे बचने के लिए आबश्यक है कि इसे ब्याह शादियांकी, ज्योनारोंकी, नुक्तोंकी तथा और भी तरह तरहकी फिज़ल खर्चियोंको एकदम उठा देना चाहिए। इन दुःखके दिनों में ये बातें शोभा नहीं देती । निर्धनताका दूसरा कारण व्यापारकी दुर्दशा है। सो इसके लिए नये नये व्यापारोंकी ओर नजर डालना चाहिए । नये ढंगके व्यापार पुराने व्यापारों को मिटाते जा रहे हैं। इसके लिए देशविदेशों में घूमकर और अनुभव प्राप्त करके नये व्यापारोंको हस्तगत करना चाहिए । जातिक धनियाँको ऐसी संस्थायें खोलनी चाहिएँ जिनमें निर्धनों और निरुद्योगियांकां तरह तरहके शिल्प, व्यापार, कृषि आदिके कार्य सिखलाये जायँ और उन्हें जीविका के मार्ग सुगम कर दिये जायें। ३ स्वास्थ्य की ओरसे उदासीनता
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१ प्लेग आदि रोग । जितनी क्षति युक्त प्रान्त में जैन और अजैन संख्या की सन १९०९ ई० से १९९९ ई० तक दस वर्षोंमें इस स्पर्श और वायुके द्वारा बढ़नेवाले प्लेगसे हुई है, उतनी किसी और कारणसे नहीं हुई। कितने ही घरोंका तो नाम तक नहीं रहा । इस भयानक रोगके पंजे में बूढ़े अधिक नहीं फँसे इसने अधिकतर उन युवा पुरुषों और स्त्रियों पर हाथ साफ किया है जिनसे सन्तान उत्पन्न होती है और जनसंख्या बढ़ती है। युवक और युवतियों में भी इसने युवतियोंको अधिक सताया है । सैकड़े पीछे ४५ पुरुष और ५५ स्त्रियाँ मृत्युको प्राप्त हुई हैं। एक तो स्त्रियाँ पुरुषोंसे यों ही कम थी; फिर प्लेगने और अधिक कम कर दीं । चेचक (शीतला) रोगमें बहुत से बच्चे पीडित हुए और उनमें से बहुतसे मर गये। इनके अतिरिक्त अन्य रोगों से भी समाजको हानि पहुँची है ।
२ निर्धनता । इससे युक्तप्रान्त के जैनी ही क्या सारे भारतवासी पीडित हैं । यहाँके भूखों के
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