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अङ्क ९-१०]
गोलमालकारिणी सभाके समाचार ।
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सिंगईजी इस उत्तरसे बहुत ही खुश हुए हैं। गोलोंकी सराहना कर रहे हैं । मैंने स्वयं कई उन्होंने सूचना भी निकालं दी है । सूचनासे पण्डितोंके मुँहसे सुना है कि, भद्रबाहुसंहिता परवार समाजमें बड़ी खलबली मची है। जो जाली ग्रन्थ है, उसकी समालोचना उचित ही सिंगई, सवाई सिंगई आदि हैं, उनकी बदहवासीका की गई है और त्रिवर्णाचारादि धूर्त भट्टारकोंके तो कुछ ठिकाना नहीं है। सुनते हैं, वे इसका बनाये हुए हैं। इससे जान पड़ता है कि शत्रुकी प्रतिवाद करेंगे। कोई कोई तो अदालततककी भेदनीति काम कर गई । अब वह दिन दूर नहीं शरण लेना चाहते हैं।
है, जब आप लोगोंमें भी रूस सरीखी फूट फूट
निकलेगी और यह सुकोमल अन्धश्रद्धाका राज्य एक बिलकुल ही प्राइवेट समाचार है। ऐसे कठोर ‘परीक्षा' के पंजेमें जा फँसेगा ।" इसका समाचारोंको सर्वसाधारणमें प्रकट करना सभ्य- उत्तर क्या आया है, सो मुझे पढ़नेको नहीं ताके खिलाफ है। इसलिए मैं जैनहितैषीके पाठ- मिला । इतना सुना है कि शास्त्रीय परिषत् . कोंको अच्छी तरह और बारबार सावधान किये अपनी 'सारे दिनमें ढाई कोस' वाली रफ्तारको देता हूँ कि वे इस खबरको बिलकुल ही गुप्त कुछ तेज़ करनेवाली है। रक्खें-यहाँ तक कि कोई गैर आदमी पढ़कर
. ४ सुनानेके लिए भी कहे, तो न सुनावें । सभापति विलायतमें जो योग्यता वृद्ध सेनापति लार्डमहाशय शास्त्रीय परिषत्के साथ इन दिनों एक किचनरकी समझी जाती थी, वही जैनियोंके बहुत जरूरी मामले में पत्रव्यवहार कर रहे पुराने दलमें सरनौवाले पं० रघुनाथदासजीकी हैं । एक पत्रमें लिखा गया है-" आप लोग है। यदि युद्धके प्रारंभमें लार्ड किचनर न होते तो बहुत ही सुस्त हैं । सालभर होनेको आया, इस समय फ्रान्सका नकशा ही बदल गया होता । पर आपकी परिषत्ने कोई भी काम नहीं पं०रघुनाथदासजी भी यदि जैनगटके सम्पादक न किया । शत्रुदल दिन पर दिन प्रबल होता जा होते तो आज बाबू लोगोंने जनसमाजको नेस्त रहा है। पर आपको इसकी जरा भी चिन्ता नाबूद कर दिया होता । आपने अपने पुराने नहीं है । एक मुख्तार साहबके लेख ही गजब ढा जमानेके भद्दे, बेढंगे, बेसिलसिले, पर भयंकर रहे थे कि अब एक वकील साहब और मैदानमें लेखोंकी मारसे अपने प्रतिपक्षियोंके छक्के छुड़ा आ डटे हैं । रूसके -अजेय किलों पर जर्मनी दिये । आपके रौबीले चेहरे और प्रज्वलित नेत्री
और आस्ट्रियाकी भयंकर तोपोंने जो काम ने भी बड़ा काम किया। किसीको आपके सामने किया था, वही इनके लेख कर रहे हैं। यदि खड़े रहनेका भी साहसे न हुआ। इसी समय आपकी दशा रूसके ही समान रही, तो इन लोगोंने सुना कि, आपने अपने पदसे इस्तीफा पेश अन्धश्रद्धाही दीवालोंका पता भी नहीं लगेगा किया है ! इससे वे घबड़ाये और लगे महासभाके कि कहाँ गई । एक तो रूसकी प्रजा जिस मंत्री और जैनमजटके प्रकाशकके विरुद्ध तरह ज़ारके शासनसे असन्तुष्ट थी, उसी तरह आन्दोलन करने । यह ठहरा आन्दोलनका आप लोगोंकी, 'इस कुंभकरण जैसी छेह छह जमाना; इससे इन्द्रका सिंहासन डोल उठा। गोलमहीनेकी नींद और आराम तलबीसे लोग प्रसन्न मालकारिणी सभाके सभापतिने उसी समय महानहीं हैं; दूसरे आपके मेम्बरोंमें भी मतभेद होने सभाके मंत्रीको एक पत्र लिखा कि लार्ड किचलगा है । कई मेम्बर तो खुल्लमखुल्ला शत्रुके - नरके अतल जलमें डूब जानेसे जो हानि ब्रिटिश
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