Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 78
________________ ४५० जैनहितैषी [ भाग १३ लगभग ही होती है । इस हिसाबसे जब युक्त पहला कारण नहीं माना जा सकता, दूसरा ही प्रान्तमें ४०,९०० पुरुष हैं, तब स्त्रियोंकी संख्या होगा । अर्थात् रँडुए दोबारा शादी कर लेते हैं। ४०,३०० होनी चाहिए थी; परन्तु वह है और विवाहितोंमें गिन लिये जाते हैं। ३४,५९५, अर्थात् पूर्वीय देशोंकी प्रकृतिके लिहाजसे भी यहाँ ५,७०० स्त्रिया कम हैं, इस प्रान्तमें रँडुए ४,७६९ और विधवायें ८,०१२ हैं, अर्थात् रँडुए विधवाओंसे ३,३४३ जिसके कि कारण कुछ और ही हैं। कम हैं । रँडुए विधवाओंसे अधिक होने चाहिए , यहाँ पुरुषोंकी अपेक्षा स्त्रियाँ मरती अधिक थे, क्योंकि स्त्रियाँ पुरुषोंसे अधिक मरता हैं, हैं। मनुष्यगणनाकी रिपोर्टमें लिखा है कि, अतएव यह कमी वास्तवमें ३,५०० के लगभग पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियोंकी अधिक मृत्युके होगी । अर्थात् यहाँके ३,५०० रँडुओंने दोबारा कारण उनसे बुरा वर्ताव करना, अधिक काम ब्याह कर लिया है और वे विवाहित गिने लेना, उनका अनादर, उनमें स्वास्थ्यनाशक जाते हैं। पर्देका होना, उनका बालकपनमें विवाह होना और बचपनमें ही गर्भवती हो जाना, आदि हैं। यदि ये ३,५०० रँडुए दूसरी बार ब्याह न विचार करके देखा जाय, तो ये कारण बहुत करते तो ३,५०० कन्यायें बचजाती अंशोंमें सच हैं । स्थानसंकोचके कारण इन सब और इनका ब्याह ३,५०० अविवाहित पुरुषों के • कारणों पर विस्तारसे नहीं लिखा जा सकता। साथ होता । दोबारा विवाह करनेवाले अधिक२ पुरुषोंका बारवार विबाह करना और तर धनवान् पुरुष ही होते हैं । निर्धनोंका एक ही 'विवाह कठिनतासे होता है, फिर दूसरे व्याहकी विधवाविवाहका न होना । चौथे कोष्टकको ! तो आशा ही क्या की जा सकती है । इन दोदेखनसे मालूम होगा कि, सन् १९११ में युक्त बारा ब्याह करनेवाले धनवानोंमें बहुतसे पुरुष प्रान्तमें ४,७६९ रँडुए और ८,०१२ विधवायें। ऐसे होंगे जिन्हें विवाहके सर्वथा अयोग्य थीं । यहाँ प्रश्न यह उठता है कि, विधवाओंसे . समझना चाहिए । उनसे सन्तानोत्पत्तिकी आशा रँडुए इतने कम क्यों ? दोनोंकी संख्या बराबर कदापि नहीं की जा सकती । इस तरह इन्हें • होनी चाहिए थी । इसके दो कारण हो सकते हैं-एक तो यह कि पुरुष स्त्रियोंकी अपेक्षा अधिक अनसंख्या घटानेके बहुत बड़े कारण गिनना मरते हों । ऐसा होनेसे परलोवासी पुरुषोंकी चाहिए। स्त्रियाँ (विधवायें) परलोकवासिनी स्त्रियोंके युक्तप्रान्तमें ८,०१२ विधवायें हैं । यदि पतियों ( रँडुओं) से अधिक होंगी। दूसरा यह इनमेंसे वे विधवायें जो विवाह करनेके योग्य हैं, कि रँडुए दोबारा विवाह कर लेते हों और पुनर्विवाह कर लें तो इतने अधिक पुरुष अविरँडुओंकी श्रेणीमेंसे निकलकर विवाहितोंकी वाहित न रहें और जनसंख्याका ह्रास अनेक श्रेणीमें आ जाते हों और इस तरह रँडुओंकी अंशोंमें रुक जावे । पर प्रश्न यह है कि, क्या संख्या कम हो जाती हो । सरकारी रिपोर्ट में यह जैनसमाजके लिए विधवाविवाहका प्रचार करना अच्छी तरहसे दिखा दिया गया है कि, इस श्रेयस्कर होगा ? भय है कि इसके जारी होनेसे प्रान्तमें स्त्रियाँ ही अधिक मरती हैं, अतएव स्त्रीसमाजके सामनेसे एक उच्च आदर्श जाता विधवाओंकी अपेक्षा रँडुओंकी कमीका उक्त रहेगा। .. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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