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अङ्क ९-१०]
जैनसमाजके क्षयरोग पर एक दृष्टि ।
इस बढ़े हुए व्यभिचारको रोकनेकी ओर कम उम्रके पुरुषोंकी संख्या २१,७०० है, अतः शीघ्र ही ध्यान देना चाहिए। बच्चोंके चरित्र पर इनमें भी प्रति शत १८.५ के हिसाबसे कोई चार छुटपनसे ही बल्कि उनके गर्भमें आनेके हजार पुरुष अविवाहित रह जायेंगे । इस तरह समयसे ही दृष्टि रखनी चाहिए । बच्चे जब कुल ४०,८९५ पुरुषोंमेंसे ७,५०० पुरुष ऐसे हैं, माताके गर्भ में आते हैं, तभीसे उनपर माताके जिनका विवाह नहीं हुआ और न होनेकी बुरे भले विचारोंका प्रभाव पड़ता है । यदि आशा है । ये वे पुरुष नहीं हैं जिन्होंने ब्रह्ममाताके विचार अच्छे होंगे तो बच्चे उन्हें अपनी चर्यव्रत धारण करके अविवाहित रहना स्वीकार प्रकृति बनाकर जन्म लेंगे। इसके बाद उन पर किया है; किन्तु ये वे हैं, जिनके विवाह हो अच्छे संस्कार डाले जायँगे, उनके कानोंमें सदेव नहीं सकते । इस तरह जैनसमाजके पुरुषोंका अच्छे विचार पड़ते रहेंगे, उनकी दृष्टिपथमें पाँचवाँ हिस्सा अविवाहित रह जाता है । यदि सदैव अच्छे कार्य पड़ते रहेंगे और वे अच्छे इनका विवाह हो गया होता और इनके सन्तान आदर्शोकी ओर झुकाये जायेंगे, तो उनके सदा- उत्पन्न होती तो युक्त प्रान्तके जैनियोंमें सन् चारी होनेमें कोई सन्देह नहीं । आगे उन्हें १९११ में जो ९ हजार मनुष्योंकी कमी हुई विद्याध्ययन कराया जाय, नैतिक शिक्षा दी है वह न होती; उलटी कुछ वृद्धि ही होती। जाय, और कर्तव्यशील बनाया जाय, तो उनका जैनसमाजके एक पंचमांश पुरुषोंके अविजीवन बड़ी उत्तमतासे व्यतीत होगा। वाहित रहने के नीचे लिखे कारण हैं:
व्यभिचारी स्त्रीपुरुषों को सदाचारी बनानेके स्त्रियोंकी कमी। युक्त प्रान्तमें सन् १९११ लिए सुशिक्षाका प्रचार, अच्छा उपदेश, अच्छे की गणनाके अनुसार पुरुषों की संख्या ४०,८९५ अच्छे ग्रन्थोंका अध्ययन, अच्छी संगति, सामा- और स्त्रियोंकी ३४,५९२ थी । अर्थात् स्त्रियाँ जिक शासन आदि अनेक उपाय हैं, जिनका पुरुषोंसे ६३०० कम थीं । इनमें कुछ अजैन वर्णन इस छोटेसे लेखमें नहीं हो सकता। स्त्रियाँ भी सम्मिलित हैं । क्यों कि बहुतसे. उनकी ओर भी ध्यान देना चाहिए। स्थानों में अग्रवाल आदि जातियोंके लोग अजैब'
७ पुरुषोका अविवाहित रह जाना लड़कियोंको ब्याह तो लाते हैं; पर अपनी लड़.. भौर कन्याओंकी कमी। चौथे कोष्टकको कियोंको अजैनों में नहीं देते । यदि ये अजैन देखनेसे मालूम होगा कि सन् १९११ में युक्त- स्त्रियाँ जैनों में सम्मिलित न होती तो यह लि. प्रान्तमें २५ बर्षसे अधिक उम्रके पुरुषोंकी योंकी कमी ७००० के लगभग हो जाती। संख्या १९,१०८ थी और उनमें ३,५३६ पुरुष अब प्रश्न होता है कि स्त्रियाँ पुरुषोंसे कम क्यों ऐसे थे, जो अविवाहित थे । जैनसमाजमें पुरु- हैं ? क्या लड़कियाँ लड़कोंसे कम उत्पन्न होती घोंका ब्याह २५ वर्षसे कमकी ही उम्रमें हो हैं, या लड़कोंसे आधिक मर जाती हैं ? और जाता है; अतएव २५ वर्षसे अधिक उम्रके यदि अधिक मरती हैं तो क्यों ? . . कुँआरे पुरुष वे ही होते हैं, जिनके ब्याहे जा- चीन, जापान, भारतवर्ष, अमेरिका आदि नेकी बहुत ही कम आशा होती है। इन अवि- पूर्वीय देशोंमें लड़कियाँ लड़कोंकी अपेक्षा कुछ वाहित पुरुषोंकी औसत प्रति सैकड़े १८.५ कम उत्पन्न होती हैं; ( इंग्लैण्ड, फ्रान्स, जर्मनी पड़ती है । लगभग यही औसत २५ वर्षसे कम आदि पश्चिमीय देशोंमें अधिक उत्पन्न होती उम्रके पुरुषों में भी अविवाहितोंकी होगी।२५वर्षसे हैं। ) परन्तु यह कमी हजार पीछे १५ के
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