Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 75
________________ अङ्क ९-१०]. जैनसमाजके क्षयरोग पर एक दृष्टि । Am दशसे १५ तकके ७६२ और १५ से २० रुकावट डालता है । लड़कियोंका विवाह हुआ तकके १७०५ थे। कि उनका पढ़ना लिखना समाप्त हो गया । ___ इस बाल्यविवाहसे जो हानि होती है, उसका इधर घरमें बहू आई कि लड़केका मन पढ़नेसे पता इलाहाबाद, कानपुर, बनारस आदि नगरोंकी हटने लगा। दोनोंका ही ज्ञान अधूरा रह जाता जैनजनसंख्याकी घटीसे-जो १९०१ से १९११ है। न वह संसार चलानेके योग्य होती है तक दश वर्षों में हुई है-लगेगा । जैनियोंकी और न यही अपनी यथेष्ट उन्नति कर सकता है। संख्या कम हो जानेका कारण प्लेग भी है, परन्तु सन् १९११ की गणनाके अनुसार सारी जैनप्लेगने जैनियोंको हिन्दुओं और मुसलमानोंकी विधवाओंकी संख्या १,५३,२९७ और युक्तअपेक्षा अधिक सताया होगा, यह बात ध्यानमें प्रान्तकी विधवाओंकी ८,०१२ है। ये सब उम्रकी नहीं आ सकती । क्योंकि जैनी अन्य लोगोंकी विधवायें हैं। इनमेंसे १५ वर्षसे कम उम्रकी अपेक्षा अधिक धनी हैं, इस कारण ये अपनी सारे देशमें १,२५९ और युक्त प्रान्तमें ६४ हैं । रक्षा भी अधिक कर सकते हैं । जैनी और यह उन विधवाओंकी संख्या है, जिनकी उम्र लोगोंकी अपेक्षा बहुत ही घटे हैं। इसके मनुष्यगणनाके समय १५ वर्षसे कम थी; पर कारण अवश्य ही कुछ और हैं । इन नगरोंके १५ वर्षसे कम उम्रमें विधवा होनेवाली स्त्रियोंकी जैनियोंमें विवाहके समय कन्याकी आयु दश संख्या इससे बहुत अधिक होगी। हमारी समग्यारह वर्षकी और वरकी तेरह चौदह वर्षकी झमें सारी विधवाओंका सातवाँ हिस्सा ऐसा होगा, होती है । विवाहके पश्चात प्राय एक ही वर्षके जिसे इस उम्रके पहले वैधव्य प्राप्त हो गया है। भीतर दोनोंका संयोग होने लगता है । मेरठ अर्थात् सारे भारतमें २० हजारसे अधिक और कमिश्नरीकी हालत कुछ अच्छी है । वहाँ साधा- युक्त प्रान्तमें एक हजारसे अधिक जैन विधवायें रणतः विवाहके समय कन्याकी आयु १२ वर्षकी ऐसी हैं, जो १५ वर्षसे पहले विधवा हो गई हैं। और वरकी १५-१६ वर्षकी होती है। विवाह- साधारणतः कन्याओंका विवाह १०-१२ के २-३ वर्ष बाद गोना होता है और तब वर्षके भीतर हो जाता है । इस वयमें और १५ दोनोंका संयोग होता है । इससे वहाँ बाल्य- वर्षमें लगभग ४ वर्षका अन्तर होगा । भारतविवाहने कम हानि पहुँचाई है। वर्षकी आयुका परिमाण साधारणतः (औसत • बाल्यविवाहसे स्त्री-पुरुष दुर्बल, शक्तिहीन, दर्जा ) २२ वर्ष है । इसमें छोटे छोटे बच्चोंकी निस्तेज, रोगी और सुखहीन हो जाते हैं। आयु भी शामिल है । यदि हम ११ वर्षसे इनको बहुत ही थोड़ी आयु प्राप्त होती है। अधिक उम्रके मनुष्योंकी उम्रका हिसाब लगा३५-४० वर्षकी उम्र में ही ये बूढ़े हो जाते हैं। कर औसत उम्र निकालें तो वह २७ या २८ इस देशमें क्षय रोगकी वृद्धि इसी कारणसे वर्ष आवेगी । इस लिए १५ वर्षसे कम उम्र में हो रही है । लड़कियोंको बाल्यविवाहसे बहुत विधवा होनेवाली स्त्रियोंकी संख्या समस्त भारही हानि होती है । वे थोड़ी ही उम्रमें गर्भ धारण तकी जैन विधवाओंकी संख्याका अर्थात् सातवाँ कर लेती हैं और प्रसवके समय या तो मर भाग होगी और इसी लिए हमने ऊपरके पैरेमें जाती हैं, या कठिनाईसे बचकर जीवन भर यह बात कही है। . दुख भोगती हैं। यह संख्या बड़ी ही भयानक है। इन बाल-- बाल्यविवाह शिक्षाप्रचारके मार्गमें भी बड़ी विधवाओंकी दशाका विचार करके हमें जैसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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