Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 71
________________ अङ्क ९-१०] जैनसमाजके क्षयरोग पर एक दृष्टि । तीसरे कोष्टकसे यह ज्ञात हो जायगा कि चाहिए थे, या यह कहना चाहिए कि जैनसंयुक्त प्रान्तके जुदा जुदा भागोंमें सन् १९११, जातिको घटना ही न चाहिए था। १९०१, १८९१ व १८८१ ई० में कुल दस मनुष्यगणनाकी रिपोर्टके देखनेसे और सहस्र जनसंख्यामें जैनी कितने थे, और वे समीपवर्ती हिन्दूसमाजकी नगरवासी अग्रवाल, कुल जनसंख्याकी अपेक्षा कितने घटे बढ़े हैं। खंडेलवाल, पल्लीवाल आदि वैश्य जातियों, गौड, इससे मालूम हो जायगा कि अन्यमतावलम्बी सनाढ्य आदि ब्राह्मण जातियों, और अन्य उच्च कितने बढ़ गये और उनकी अपेक्षा हम जातियोंकी स्थिति पर दृष्टि डालनेसे मालूम कितने घट होता है कि, इन उच्च जातियोंका -हास हो रहा चौथे कोष्टकसे यह ज्ञात हो जावेगा कि है और इनका क्षय जैनजातियोंसे भी अधिक सन् १९११ ई० में जैनी किस किस आयुके है । यहाँ यह प्रश्न उठ सकता है कि जब ये कितने थे और वे विवाहित, अविवाहित या उच्च जातियाँ कम हो रही हैं तो हिन्दू जातिकी रँडुवे, कैसे थे। इससे यह भी ज्ञात हो जायगा कमी प्रतिशत १.४ ही क्यों ? जैन जातिकी कि सन् १९११ में कितनी विधवायें किस किस · भाँति १० प्रतिशत या उससे भी अधिक क्यों अवस्था की थी। नहीं ? यह प्रतिशत १-४ की कमी इस लिए सन् १९०२ ई० में युक्तप्रान्तकी जो जैन- है कि हिन्दू जातिमें ग्रामवासी जाट, धीवर, जनसंख्या ८४,५८२ थी वह १९११ ई० में चमार, भंगी आदि नीच जातियाँ भी सम्मिलित ७५,७९५ रह गई । अर्थात् १० प्रतिशत कम हैं जिनकी संख्या सदैव बढ़ा करती है और हो गई । इन वर्षों में हिन्द प्रति सैकडे १.४ उनके सम्मिलित होनेके कारण हिन्दू जातिमें और मुसलमान १.१ घटे। ईसाई ७३.७ बढ़े अधिक कमी नहीं मालूम होती । और आर्यसमाजी दूने हो गये । ___ यद्यपि जैनी आर्यसमाजियों और ईसाइयों- काकथन है कि जावित, निरोगी और धनवान् सम्पत्तिशास्त्रके वेत्ताओं और बड़े बड़े विद्वानोंके समान बढ़ने न चाहिए थे; क्योंकि ये आर्य जातिकी जनसंख्या ३० वर्षमें दुगुनी हो जाती समाजियों और ईसाइयोंके समान अन्यधर्मा है, अर्थात् प्रति दस वर्षमें २५ प्रतिशत बढ़ वलम्बियोंको जैनी नहीं बनाते, तो भी ये जाती है। पर हमारे इस युक्तप्रान्तकी जैनहिन्दुओं और मुसलमानोंकी अपेक्षा आधिक मालि ' जातिकी वृद्धिकी तो बात ही क्या यह तो कदापि न घटने चाहिए थे । यदि ये घटते तो । उलटी दस वर्षों में १० प्रतिशत घट गई, अर्थात् "हिन्दुओं और मुसलमानोंकी भाँति प्रति सैकड़े । है इसकी २५ प्रतिशतकी स्वाभाविक वृद्धि रुकी १.४ और १.१ ही घटते; परन्तु ये घटे हैं । और १० प्रति शत घटोतरी हुई, इस तरह इसका १० प्रति सैकड़े । युक्तप्रान्तकी जनसंख्याके कुल ह्रास ३५ प्रतिशत हुआ। हासका मुख्य कारण प्लेग है । जैन जाति अन्य जातियोंकी अपेक्षा आधिक धनवान है, इस लिए उक्त बातोंसे पता लगता है कि, जैनजाति यह जाति अपनी इस कालरूप प्लेगके मुँहसे अनेक रोगोंसे पीड़ित है । जबतक रोगोंका अन्य जातियोंकी अपेक्षा आधिक रक्षा कर सकती अनुसंधान न किया जावेगा, तबतक न ये रोग यी, इस हेतुसे जैनी मुसलमान और हिन्दुओंकी दर किये जा सकते हैं और न रोगोंसे बचनेके भाँति १.१ और १.४ प्रतिशत कम न होने उपाय सोचे जा सकते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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