Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 41
________________ अङ्क ९-१० ] पर ले जाकर वहाँका राज्य दे दिया और इस तरह उन्हें सन्तुष्ट कर दिया । राज्य देने से पहले धरणेन्द्रने यहाँ निवास करनेवाली विद्याधरियों के रूपादिका वर्णन किया था, जिसको आदिपुराणके कर्ताने बहुत विस्तार के साथ लिखा है । इस प्रसङ्गका एक श्लोक देखिए: आदिपुराणका अवलोकन । नेत्रैर्मधुमदाता त्रैरिन्दीवरदलायतैः । मदनस्येव जैत्रास्त्रैः सालसापाववीक्षितैः + ॥१९१॥ - पर्व ८ । अर्थात् उनके नेत्र शराब के नशेसे कुछ कुछ लाल हो रहे थे, कमलपत्रों के समान विशाल थे, आलसके साथ कटाक्ष फेंकते थे और ऐसे जान पड़ते थे मानों कामदेवके विजयी शस्त्र हों । इस इलोकमें नेत्रोंको ‘ ' विशेमधुमदाताम्र' षण दिया है, जिसका अर्थ होता है, शराबके नशेसे लाल हुए नेत्र | मालूम नहीं, कर्मभूमि की आदिमें उन विद्याधरियों को यह शराब कहाँसे मिलती थी, कौन इसे बनाता था, उन्होंने किससे इसका बनाना सीखा था और क्यों वे इसका पीना अनुचित नहीं समझती थीं । आगे चलकर एक स्थानमें धणेन्द्र उन राजकुमारोंसे कहता है : इह मृणालनियोजितबन्धनैरिहवतंस सरोरुहताढनैः । इह मुखासवसेचनकैः प्रियान्विमुखयन्तिरतेः कुपिताः त्रियाः ॥ - पर्व १९ । अर्थात् कुपित हुई स्त्रियों में से कोई कोई कमनाल तन्तुओंके बन्धनोंसे, कोई कोई सिरमें पहने हुए कमलोंकी चोटोंसे और कोई कोई अपने मुँह में भरी हुई शराब के कुरलोंसे अपने • अपने पतियोंको रतिक्रीडासे हटा रही हैं । ... इस श्लोक मादरा के वास्ते आसव शब्द आया है। + इस श्लोकका अन्य आगेके अनेक श्लोकोंके साथ है। इसी कारण इसमें 'क्रिया' नहीं है । Jain Education International ४१३ भरत महाराज जब दिग्विजय करते हुए दक्षिणकी ओर गये, तब वहाँ उनकी सेना के विषयमें लिखा है: निपपे नालिकेराणां तरुणानां नतो रसः । सरस्तीरतरुच्छायाविश्रान्तैरस्य सैनिकैः ॥ १४ ॥ -पर्व ३० । अर्थात् सरोवर के किनारे लगे हुए वृक्षोंकी छाया में आराम करनेवाले सैनिकोंने नारियलके तरुण वृक्षोंसे बहते हुए रसको पीया । नारियल के वृक्षों का रस एक प्रकारकी शराब ही है । इस बात की पुष्टि इसी पर्वके नीचे लिखे श्लोक से होती है: नालिकेरा सवैर्मत्ताः किञ्चिदाघूर्णितेक्षणाः । यशोऽस्य जगुरामन्द्रकुहरं सिंहलांगनाः ॥ २५ ॥ अर्थात् सिंहलद्वीपकी तरुण स्त्रियाँ - जो और इस कारण जिनके नेत्र कुछ कुछ घूम रहे नारियलकी शराब पीकर उन्मत्त हो रही थीं थे, भरतका यशोगान कर रही थीं । भरतकी सेना के लोग क्षत्रिय वर्णके थे, जो उस समयका सबसे उत्तम वर्ण गिना जाता था । मालूम नहीं उन्होंने इस उन्मादक रसका पीना क्यों स्वीकार किया और सिंहलद्वीपकी स्त्रियाँ कौन थीं जो शराब पीकर उन्मत्त हो जाया करती थीं । जब भरतमहाराजका दूत बाहुबलिकी राजधानी में यह सन्देशा लेकर पहुँचा कि या तो अधीता स्वीकार कर लो, या युद्धके वास्ते तैयार हो जाओ, तब ग्रन्थकतीने वहाँकी स्त्रियोंकी रात्रिक्रीडा आदिका वर्णन करते हुए लिखा हैः नास्वादि मदिरा स्वैरं नाजघ्रे न करेऽर्पिता । केवलं मदनावेशात्तरुण्यो भेजुरुकता ॥ १८७ ॥ उत्संगसंगिनी भर्तुः काचिन्मदविघूर्णिता । कामिनी मोहनास्त्रेण बतानंगेन तर्जिता ॥ १८८ ॥ पर्व ३५, अर्थात् वहाँकी जबान स्त्रियाँ शराब को इच्छापूर्वक पिये विना, सुँघे विना और हाथमें लिये विना ही केवल कामदेव के आवेश से उन्मत्त हो गई थीं। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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