Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 40
________________ ४१२ जैनहितैषी [भाग १३ तासामालापसंलापपरिहासकथादिभिः। कराया जाता था, युद्धके समय वे सेनाके सुखासिकमसौ भेजे भोगांगैश्च मुहूर्तकम् ॥ १३२ साथ चलती थीं और राजाओंके डेरों पर उनके अर्थात् उस समय जवानीके मदसे उन्मत्त हुई रणवासोंके पास ही रहती थी, जीत आदिके वेश्यायें और राजवल्लभायें उनके चारों ओर खुशीके मौकों पर मंगल अक्षत और आशीर्वाद आकर बैठ जाती थीं। उनके आलाप-संलाप, देनेका महान् काम उन्हें ही सोंपा जाता था, हँसी, मजाककी बातोंके द्वारा वे (महाराज दो पहरको राजालोग उनके साथ हँसी-मजाक भरत ) घड़ी भर सुखसे निवास करते थे। करते थे और वे भेटके तौर पर भी दूसरोंको इससे मालूम होता है कि, उस समय वेश्यायें दी जाती थीं। अब प्रश्न यह है कि जब राजाओंकी एक आवश्यक सामग्री थीं और वेश्यायें ऐसे आदरकी सामग्री हैं, तब आजकल उनके साथ हँसी खुशीमें घड़ी-दो घड़ी व्यतीत जनसमाजके नेता, उपदेशक, व्याख्याता, पत्रकरना वे अपना एक नित्य-कर्म समझते थे। सम्पादक आदि इनके नृत्यादि बन्द करानेके आगे पर्व ४५ के कछ श्लोकोंसे यह भी लिए क्यों जमीन असमान एक कर रहे हैं ? जब मालूम होता है कि, उस समय वेश्यायें भेटमें या आदिपुराण जैसे मान्य ग्रन्थमें 'साम्राज्य' तोहफेमें मी दी जाती थीं। देखिए:- क्रिया ऐसी महान क्रियामें वेश्याद्वारा चवर हेमांगदं ससोदर्यमुपचर्य ससंभ्रमं । दुरानेकी स्पष्ट आज्ञा है, तब विवाहादि उत्सपुरो भूय स्वयं सर्वैर्भोग्यैः प्रापूर्णकोचितैः ॥१८२॥ वोंमे वेश्यानृत्य करानेका निषेध क्यों किया नृत्यगीतसुखालापर्वारणारोहणादिभिः । वनवापीसर:क्रीडाकन्दुकादिविनो दनैः ॥ १८३ ।। हमारी समझमें वेश्याओंके सम्बधका उक्त अहानि स्थापयित्वैवं सुखेन कतिचित्कृती। वर्णन ग्रन्थकर्ताकी निजकी कल्पना है। काव्यके तदीप्सितगजाश्वास्नगणिकाभूषणादिकं ॥ १८३ ॥ सौन्दर्यको बढानेकी दृष्टिसे और अपने समयके प्रदाय परिवारं च तोषयित्वा यथोचितं । राजाओंमें वेश्याओंकी विशेष प्रतिपत्ति देखनेसे चतुर्विधेन कोशेन तत्पुरी तमजीगमत् ॥ १८५॥ ही उन्होंने इस प्रकारका वर्णन करना उचित इनका भावार्थ यह है कि, जयकुमारने अपने समझा होगा। उनके समयमें वेश्यायें इस दृष्टिसे साले हेमांगद और उसके भाइयोंका सब प्रकारके नहीं देखी जाती होंगी, जिससे कि आजकल भोगोपभोगोंसे, नाच तमाशोंसे, हाथी घोड़े देखी जाती हैं। आदिकी सवारियोंसे, सरोवर आदिकी सैरों और तरह तरहके खेलोंसे सत्कार किया और जब वे जाने लगे तब उन्हें उनके दिलपसन्द हाथी, मद्यपान । घोड़े, अस्त्र, वेश्यायें, और आभूषण आदि पदार्थ जिस समय आदिनाथ भगवान छह महीनेका भेट किये। उपवास ग्रहण करके ध्यानस्थ हुए, उस समय ___ अभीतक जो कुछ कहा गया, उससे यह नमि और विनमि नामके राजकुआरोंने आकर मालूम होता है कि, चौथे कालमें वेश्याओंका उनसे प्रार्थना करना शुरू की कि आपने जिसपूरा पूरा आदर सत्कार था । राजदरबारोंमें प्रकार अपने पुत्रोंको राज्य दिया है उसी प्रकार वे राजाओंके मस्तकों पर चवर ढोरती थीं; हमको भी दीजिए। इस पर धरणेन्द्रने आकर राज्याभिषेक आदि उत्सवोंमें उनका नृत्य उन्हें समझाया और उन दोनोंको विजयाध पर्वत. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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