Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 37
________________ अङ्क ९-१०] हमारे देशका व्यभिचार। ४०९ मैं सर्वथा असहाय हूँ। और कोई जरिया एक सौ और बीस रुपया कर्ज होगया है। इस पेट पालनेका नहीं है । उमर २०-२१ पुत्रीके सयानी होने पर इसीको बेचकर, अथवा वर्षकी है। यहाँ मुझसी ही अभागिने ८-९ वेश्या बना कर कर्ज अदा करूँगी।" स्त्रियाँ और हैं । उनका चरित्र ठीक नहीं है। क्या अन्धेर है ! स्त्रियों पर कैसा अत्याचार २ लछमी, वृन्दावन-" मैं ब्राह्मणी हूँ। मेरी किया जा रहा है ! स्त्रियाँ चाहे कितनी ही गई सास आदि कई स्त्रियाँ मुझे यहाँ छोडकर चल गुजरी क्यों न हों, पर बिना बेईमान शैतान पुरुदी। पत्र भेजने पर उत्तर मिला कि अपना बाँके बहकाये वे अपने धर्मसे कभी नहीं डिगतीं। कर्तव्य स्मरण करो, यहाँ लौटकर क्या मुँह स्त्रियोंका चरित्र बिगाड़ना पुरुष जातिका काम दिखाओगी, वहीं जमनामें डूब मरो । मेरी माँ है। बाज हरामजादोंने तो सैकड़ों स्त्रियोंकी मिट्टी नहीं है । पिताने मेरे पत्रका कभी उत्तर नहीं पलीद कर दी है । यह ठीक है कि ताली दोनों दिया ।” हाथसे बजती है; पर समाज केवल स्त्रियोंको ही ___३ श्यामा, हरद्वार-“ मेरे पिता मुझे यहाँ र क्यों दण्ड देता है ? अनाथा स्त्रियाँ ही क्यों धरसे निकाली जाती हैं ? कुचरित्र पुरुष जिनका छोड़ गये हैं।" व्यभिचार स्त्रियोंके मुकाबले सौ पचास गुना ४ राजदुलारी, गया- "मेरे ससुरालके लोग राग आधिक होता है क्या सजा पति हैं ? इन पापोंकी बड़े धनी हैं । यहाँ मुझे पुरोहितजी छोड़ गये हैं। जड़, पाखण्डी कुचाली पुरुषोंका, समाज क्यों कुछ दिनों तक पाँच रुपया मासिक आता रहा, नहीं तिरस्कार करता ? ऐसा न करना इन पापिपर अब कोई खबर नहीं लेता । पत्रोत्तर भी नहीं योंको स्त्रियोंका सर्वनाश करनेके लिए सहारा देना आता ।" और अनाथ, असहाय अबलाओं पर घोर अत्या५ नलिनी और सरोजिनी, काशी-"हम चार करना है। दोनों अभागिनें बंगालकी रहनेवाली हैं । हम हमारा समाज, जिसे हम मूर्खतावश अति दोनोंका एक ही घरमें विवाह हुआ था। नलिनी उत्तम समझ बैठे हैं और जिसकी पवित्रता पर विधवा हो गई । मेरे पति मुझे एक लड़की होने फूले नहीं समाते, बिलकुल निर्जीव, निर्बल और · पर वैराग्य लेकर चल दिये। मेरे ससुरजी पन्द्रह सर्वदा अशिक्षित मनुष्योंका समूह है। इस समारु० मासिक पेन्शन पाते थे। काशीवास करने जको सच्चरित्र स्त्रियोंकी आह और कुचरित्र यहाँ आये और हम दोनोंको साथ लेते आये। नियोंका पाप भस्मीभूत कर रहा है और यदि तीन महीनेके बाद मर गये । एक परिचित इस पर लोगोंने ध्यान न दिया तो यह आह बंगाली महाशय सहायता देनेके बहानेसे मिले कुछ ही काली समाजको जलाकर राख कर और एक दिन हम दोनोंका कुल जेवर चुरा ले देगी-सावधान ! * गये । फिर इससि लगी हुई पुलिसकी एक घट- * हिन्दी ग्रन्थरत्नाकर सीरीजमें शीघ्र ही प्रकानासे बलपूर्वक हम अनाथाओंका सर्वनाश किया शित होनेवाले 'देशदर्शन ' नामक ग्रन्थका एक गया और इस दीन हीन दशाको पहुँचाई गई। अध्याय । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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