Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 33
________________ अङ्क ९-१० ] हवा खाने निकले हैं । अरे यह वह देखो, जौहरी जी मलकाको रहे हैं । हमारे देशका व्यभिचार । कलकत्ता है । लिये उड़े जा मैं- और सामने बच्चा किसका बैठा है ? मित्र -- जौहरी महाशयका । अभीसे सीखेगा नहीं तो आगे बापका नाम कैसे रक्खेगा ! मैं -- छिः ! क्या बेहयाई है, कैसी बेशरमी है । मित्र --- बस, तुम तो गँवार ही रहे । कैसी बेशरमी ? वह देखो गाड़ियोंकी तीसरी कतार - एक, दो, तीन (कोई २० तक गिनाकर ) जानते हो उनमें कौन हैं ? पहचानते हो ? सबकी सब वेश्यायें हैं । वे देखो सुशील बाबू उसे गुलदस्ता दे रहे हैं । डाक्टर बाबू फूलों का बटन उसकी साड़ी में लगा रहे हैं। जरा आँख खोल कर देखो - प्र - प्रमथ बाबू किसके गले में हाथ दिये घूम रहे हैं ? यहाँ दिन भर लोग कस कर काम करते हैं, शामको यदि थोड़ा दिलबहलाव न करें तो मर ही जायँ । रहीं घरकी स्त्रियाँ; सो अव्वल तो उनसे यदि आजादी से बातचीत करें, तो माँ-बाप तानोंसे बेध डालें, और दूसरे उन्हें अपनी गृहस्थी और बालबच्चों के रोने-धोने से कहाँ फुरसत है, जो दिनभरके थके माँदे पतिका दिल बहलाकर उनकी थकावट दूर करें। तुम विलायत में तो रहते नहीं कि हम भारतवासियोंके गृहसौख्यका हाल न जानते हो । हम लोगों का घर तो नरककुंड समझो। यह सभ्यता और बेशरमी नहीं; कलकत्ते में इसकी परम आवश्यकता है । थियेटर | यहाँ भी वही बात । आरचेष्ट्राकी कोच पर दो सीटें हुआ करती हैं । प्रायः सभी कोचों पर बाईजी ( वेश्यायें ) और सेठजी साथ साथ बैठे हैं । किसी भी अमीरजादेकी बगल इन शरीफजादियों से खाली नजर नहीं आती । तमाशा खतम होने पर सेठ साहू Jain Education International ४०५ कार तो अपनी अपनी चिड़ियों के साथ हवागा ड़ियों पर हवा हों गये, रहे किराये की गाड़ी करनेवाले; सो जिसे देखिए वही गाड़ीवाले से किसी 'जान' के मकानका किराया तै कर रहा है । यदि मण्डलीका कोई आदमी घर जानेका नाम लेता है तो दूसरे उसे समझा बुझा कर ठीक कर लेते हैं। कहते हैं कि अरे यार, यह गोल्डेन नाईट ( शनिश्चरकी रात ) बड़ी मुशकिलोंसे सात दिनकी कड़ी मेहनत के बाद प्राप्त होती है, इसे घरकी बेहंगम स्त्री और कलहमें नहीं खोनी चाहिए । ग्रीन पार्टी । रविवार को अकसर दोपहर के बाद लोग शहरके बाहर बागबगीचोंमें, दस दस पाँच पाँचकी गोल बाँध कर निकल जाते हैं । कहीं ग्रीन सिरप (भंग) उड़ता है और कहीं हाट वाटर पेग पर पेग चढ़ाया जाता है। हर पार्टी में पार्टी की जान एकाद वेश्या अवश्य रहती है । यह रिपोर्ट हम लोगों के भ्रमण करनेकी है । अब सरकारी कागजोंसे देखिए कि इस शहरकी क्या दशा है । सन् १९११ की मर्दुमशुमारीकी रिपोर्टसे ज्ञात होता है कि कलकत्ते शहरमें १४,२७१ ( चौदह हजार !! ) वेश्यायें हैं । कलकत्तेकी कुल स्त्रियोंमें से जिनकी उमर २० से ४० वर्षकी M प्रत्येक बारह- स्त्री पीछे एक वेश्या है ! १२ से २० तककी आयुकी स्त्रियोंमें प्रति सैकड़ा ६ वेश्यायें हैं ! और १०९६ वेश्या - लड़कियोंकी आयु १० वर्ष से भी कम है ९० फीसदी वेश्यायें हिन्दू हैं ! भगवन् ! बारह, दस या इससे भी कम आयुकी वेश्यायें ! भारतमें जैसे बाल-विवाहकी कुरीति चल निकली है वैसे ही बाल वेश्याओंका भी बुरा रिवाज जारी हो गया है । इस अन्धेरके विषयमें डाक्टर एस. सी. मैकेंजी एक स्थान For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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