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अङ्क ९-१०] हमारे देशका व्यभिचार। गये । उनका हृदय बन्द हो गया और वे कुछ ही विवाह बहुत देरमें होता है, बहुतसे स्त्रीपुरुष घण्टोंमें परलोक सिधार गये।
__ आयुपर्यन्त अविवाहित रहते हैं, हम पक्षपातके लाश दफना कर मेम साहिबा अपने बँगले पर रंगीन चश्मेसे उन पर दृष्टि डालते हैं और उनमें न आकर साहब कलेक्टरके साथ उन्हींकी मोटर सर्वथा पाप ही पाप देखते हैं। पर सीधी उनके बँगले पर गई और वहाँ कुल दो खैर, जो हो; मुझे इस लेखमें यह दिखाना सप्ताह रह कर विलायत चली गई। अभीष्ट नहीं है कि भारतमें विलायतसे, अथवा ___ इधर स्कूल क्या, सारे शहरके लोग, कलेक्टर विलायतमें भारतसे अधिक व्यभिचार है । मेरे
और प्रिंसपलकी विधवाको व्यभिचारी-व्याभिचा- इस कथनका अभिप्राय केवल इतना ही है कि रिणी कहकर गालियाँ देते थे। कोई कोई तो दूसरोंकी फूली देखना और अपना ढेंढर न देयहाँ तक कह बैठते थे कि प्रिंसपल साहबको खना अच्छा नहीं । अर्थात् हम दूसरोंका दोष इन्हीं दोनोंने विषसे मार डाला है । पर बात यह देखकर उन पर हँसते हैं, परन्तु अपने दोष पर थी कि स्वर्गीय प्रिंसपल साहब कलेक्टरके बह- आँखें बन्द कर लेते हैं । इस बातकी जाँचके नोई थे । मेम साहिबा कलेक्टरकी सगी बहिन लिए मैं आपको ब्रिटिश राज्यके-जहाँ कि थीं । रंजका यह हाल था कि कुल दो सप्ताहोंमें चौबीसों घण्टे सूर्य अस्त नहीं होते-दुसरे नम्बरके वे २४ पौंड अर्थात् १२ सेर घट गई थीं! शहरमें, भूमण्डलके प्रधान बारहवें नम्बरके शह
. भारतके सुप्रसिद्ध मित्र और कांग्रेसके जन्भ- रमें और भारतके सबसे बड़े शहर कलकत्तेमें, दाता, मिस्टर हयूम लिखते हैं कि-"भारत जो जनसंख्या ( आबादी ) के हिसाबसे बम्बई, और विलायतके लाखों परिवारोंका एक साथ दिल्ली, लाहौर आदि सब शहरोंसे बड़ा है, ले मुकाबला करके देखने से यह निश्चय करना, या चलता हूँ। आइए पहले इस शहरकी जाँच धूमकहना कठिन है कि भारतमें अधिक व्यभिचार है कर करें । घबराइए नहीं। लोगोंको उँगली उठाने या विलायतमें । समाजमें कमजोर स्त्रियाँ और दीजिए, हँसने दीजिए । शरमकी बात तो उस क्रूर पुरुष सदैव रहते हैं, जिनका चरित्र किसी समय होती जब हम तमाशबीनी करने या ऐशो प्रकारकी उच्च शिक्षासे नहीं सुधर सकता । पर, अशरत करने जाते होते । हम लोग तो मर्दुमसाथ ही समाजकी दशा सुधारने, स्त्रीपुरुषोंको शुमारीके अफसरोंकी तरह देशकी सच्ची दशाकी सदाचारी और सच्चरित्र बनानेका एक मात्र जाँच करने चल रहे हैं। उपाय उचित शिक्षा ही है ।” अस्तु, यह किसी
मछुआ बाजार। तरह नहीं कहा जा सकता कि विलायतके शि- मीलों तक सड़कके दोनों तरफ मकानोंके क्षित स्त्री या पुरुष व्यभिचारी हैं।
ऊपरके खण्डोंमें वेश्या खचाखच भरी हैं। ये रेनाल्डके झूठे उपन्यास, मिस्ट्रीज आफ कोर्ट बहुधा मारवाड़िन और एतद्देशीय हैं । जैसे दरआफ लण्डन, स्त्रीत्याग या तलाकके मुकद्दमें, बेमें कबूतर कसे रहते हैं, वैसे ही मकानका अथवा इधर उधरकी उड़ती हुई खबरें सुन कर किराया अधिक होनेसे एक एक कमरेमें चार किसी राष्ट्रको, या एक दो आदमियोंके कुचरित्र चार पाँच पाँच वेश्यायें सड़ा करती हैं। सड़कहोनेसे सारे समाजको चरित्रभ्रष्ट समझ लेना ठीक की पटरियों पर जगह जगह आठ आठ दश नहीं । इन किस्सोंकी पढ़ कर, और यह देख- दश बंगाली लड़कियाँ एक कतारमें नाके नाके कर कि इनके यहाँ परदा नहीं है, स्त्रियों तकका पर खड़ी हैं। इनका स्थान उसी नाकेके ठीक
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