Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 09 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 6
________________ ५१४ मथुराका जैन स्तूप । विस्तार और बनावट—इस स्तूपके तलेका व्यास '४७ फीट था। यह ईंटोंका बना हुआ था; ईटें आपसमें बराबर न थी किन्तु छोटी बड़ी थीं । इसका भूमिका ढाँचा ( ground plan ) इक्के या गाडीके आकारका था। केंद्रसे बाहरकी दीवार तक आठ व्यासार्ध थे जिन पर आठ दीवारें स्तूपके भीतर ही भीतर ऊपर तक बनी हुई थीं। इन दीवारोंके बीचमें मिट्टी भरी हुई मिली । कदाचित् यह स्तूप ठोस था और गृह-निर्माणकी मितव्ययिताके कारण भीतरकी ओर - केवल ये दीवारें ही बना दी गई थीं। इनके कारण भीतरके कुल हिस्सेमें ईंट चिननेकी जरूरत न रही। स्तूपके बाहरकी ओर तीर्थकरोंकी प्रतिमायें बनी थीं। __ कालनिर्णय-भाग्यवश इस स्तूपमें बनी हुए एक प्रतिमाके सिंहासनका एक अंश मिल गया है । उस पर एक लेख है । लेखके बीचमें धर्मचक्र है जिसकी कई स्त्रियाँ पूजा कर रही हैं । लेख यह है:-- "सं ७९ व दि २० एतस्यां पुर्वायां कोट्टिये गणे वैरायं शाखायां को अयवृिधहस्ति अर्हतो नंदि (आ) वर्तस प्रतिमं निर्वतयति ............भार्यये श्राविकाये (दिनाये) दानं प्रतिमा वोद्धे थूपे देवनिर्मिते प्र।" अनुवाद-संवत् ७९ में, वर्षाके ४ थे महीनेमें, २० वें दिन अयविधहास्त ( आर्यवृद्धहस्तिन ) ने-जो वैरशाखाके कोट्टिया गणके उपदेशक हैं, अर्हत् नंदिआवर्त (नोन्द्यावर्त ) की प्रतिमाके बनानेकी सलाह दी........यह प्रतिमा, जो........की भार्या श्राविका दिना (दत्त) का दान है, देवनिर्मित बौद्ध स्तूप पर लगाई गई। १. एक स्थान पर ७० फीट भी लिखा है । २. फुहररने अर्हत् नान्द्यावर्तको अरःनाथ माना है और यह लिखा है कि अरःनाथका चिह्न नान्द्यावत है । न मालूम यह कहाँतक ठीक है । ३. इस लेखके शिलालेखोंके अनुवाद अंगरेज़ी अनुवादसे अनुवादित हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 72